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Friday, August 23, 2013

जो भी निकली, बहुत निकली



जुबां से मैं न कह पाया, वो आंखें पढ़ नहीं पाया
इशारों की भी अपनी इक अलग बेचारगी निकली।।

मेरे बाजू में दम औ' हुनर की दुनिया कायल थी
हुनर से कई गुना होशियार पर आवारगी निकली।।

तसव्वुर में समंदर की रवां मौजों को पी जाती
मैं समझा हौंसला अपना मगर वो तिश्नगी निकली।।

जरा सी बात पे दरिया बहा देता था आंखों से
मेरी मय्यत पे ना रोया ये कैसी बेबसी निकली।।

जिसे सिखला रहा था प्यार के मैं अलिफ, बे, पे, ते
मगर जाना तो वो इमरोज की अमृता निकली।।

दवा तो बेअसर थी और हाकिम भी परेशां थे
मुझे फिर भी बचा लाई मेरी मां की दुआ निकली।।

Thursday, August 22, 2013

कुछ यूं ही




शजर की टूटी शाखों पर 
फूलों की बातें, रहने दो 
बदरा रूठ गया धरती से
अब बरसातें, रहने दो

अंगना सौतन का महका दो
मेरे गजरे से भले पिया 
पर, कान की बाली पे अटकी
अपनी वो यादें रहने दो
--------

रहने दो थोड़ा बांकापन
चाल समय की टेढ़ी है
ले जाओ सारा सीधापन
छल-मक्कारी रहने दो

बक्से में रहने दो नकाब
चेहरे पर गर्दिश काफी है
दो लफ्ज से छलनी दिल होगा
लोहे की आरी रहने दो

दुश्मन पर प्यार लगा आने
खंजर की पढ़कर आत्मकथा
दुआ-सलाम कबूल मुझे
पर, पक्की यारी रहने दो। 


Tuesday, August 20, 2013

हाथापाई करते हैं



गोल-मोल सी इस दुनिया में, 
चल अबकी लड़ाई करते हैं 
बहुत हो चुका प्यार-मुहब्बत
हाथापाई करते हैं....
कड़वी बातें सारी मन की
बोल सके तो बोल मुझे 
दबी आग मैं भी उगलूं
कटु शब्दों में तोल मुझे
कुछ ऐसा करके भी देखें
जैसा बलवाई करते हैं 
बहुत हो चुका प्यार-मुहब्बत 
हाथापाई करते हैं....
बगल छुरी, पीछे से खंजर
प्यार नहीं आसान यहां 
सिसकी तेरी सुन कर आती
चेहरे पर मुस्कान यहां
जो ना दे, तो हक छीन के ले
चल ऐसे कमाई करते हैं,
बहुत हो चुका प्यार-मुहब्बत
हाथापाई करते हैं....

Thursday, July 25, 2013

जब-जब फूटता है




जब-जब फूटता है
दिल में उसकी यादों का लड्डू
मीठी सी लगने लगती है सारी कायनात
टपकने लगती है सांसों से चाशनी
और मैं बन जाती हूं मिठास....
गुलदाने सी चिपक जाती हैं
जहां-तहां मुझसे, तेरी बातें,
बाहों में तेरी
ताजे गर्म गुड़ सी हो जाती हैं मेरी रातें,
मिश्री की डली बन जाते हैं अहसास
जब-जब फूटता है....


Friday, July 12, 2013

‘टमाटर के सेंटीमेंट्स’



कहते हैं कि छह महीने बाद घूरे के भी दिन फिर जाते हैं लेकिन, टमाटर के दिन अब जाकर बहुरे हैं। दाम बढ़ाने के एवज में टमाटर प्रजाति भगवान का लाख-लाख शुक्रिया अदा कर रही है। धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए टमाटरों के सरदार ने भगवान को एक पत्र लिख भेजा है, जो इस प्रकार है-
लाली मेरे टमाटर की जित देखूं तित लाल
टमैटो खरीदन मैडम गईं, दाम सुन हो गर्इं लाल
गॉड तुस्सी ग्रेट हो....अब पता लगा कि आपके घर में देर है अंधेर नहीं।  हम सालों से इस आस में थे कि कभी तो हमारे दाम बढ़ें और हमें राष्ट्रीय सब्जी का दर्जा हासिल हो पर हर बार चर्चा आलू-प्याज से आगे नहीं बढ़ पाती थी, (न जाने दोनों के दोनों विलायत से कौन सी डिग्री लेकर आएं हैं, कइयों दफा सब्जी की टीआरपी में अव्वल आ चुके हैं) पर अबकी हमारे गुर्गों ने आलू-प्याज के मुंह पर ऐसी लालिख (टमाटर का कलर) पोती कि सब्जियों के राजा (आलू ) का बाजा बजा दिया। अब बहस-मुबाहिसों में हमारा नाम लिया जा रहा है, फेसबुक पर हम छाए हैं और घर-घर हमारा ही राग छिड़ा हुआ है। सब्जी मंडी में हम हॉट सीट पर बैठे हुए हैं और हमारे ठाठ-बाठ देख-देखकर बाकी सब्जियां कुड़-कुड़ कर लाल हुए जा रही हैं।
भगवान अब तक अपनी व्यथा हम मन में ही छुपाए थे। आप ही बताइए प्रभु जो  टमाटर सब्जियों को रंग-रूप-स्वाद प्रदान करता है, वो अब तक रुपयों के दाम बिक रहा था...? गिरते रुपये के रहमो-करम से अब हमें डॉलर संपन्न लोग ही खरीद पाया करेंगे। अगर इसी तरह मंहगाई का हाथ हमारे सिर पर रहा तो लोग टमाटर का दर्शन विंडो शॉपिंग के दौरान किया करेंगे। हमारे रख-रखाव के लिए सरकार एक अलग से मंत्रालय बनाएगी जो समय-समय पर देश विभिन्न राज्यों के टमाटरों की प्रदर्शनी लगाया करेगा। आलू के साथ हमें रासलीला कतई पसंद नहीं, इसलिए अब हम सिर्फ पनीर जैसी उच्च वर्गीय सब्जियों के साथ रिलेशन रखेंगे। समाज में हमारे लिए मार-काट मचेगी, इंडिया टीवी पर फ्लैश कुछ यूं चलेगा ‘...भाई-भाई में टमाटर के लिए चलीं गोली, बहन बोली, डोंट प्ले टमाटर के लिए खूनी होली..।’ कुछ ही दिन बाद सुर्खियों में एक ओर घोटाला सामने आएगा.देश का सबसे बड़ा घोटाला ‘...टमाटर घोटाला’ फलां-फलां नेता की बीवी ने अपनी किचेन की टांड़ पर छुपा कर रखे थे एक बोरा टमाटर। विपक्षी नेता के बेटे के टिफिन में रोज टमैटो सॉस रखी देख सत्ताधारी दल ने बिठाई सीबीआई की जांच। टीवी चैनल वाले चीख-चीख कर कहेंगे....लालू चारा चबा गए, कांग्रेसी कोयला खा गए...जिन्हें कुछ नहीं मिला वे टमाटर पचा गए...। और तो और प्रभु....नाना पाटेकर की फिल्म का डायलॉग होगा...‘साला एक टमाटर घर का बजट बिगाड़ देता है....’। एक बूढ़ी मां अपने बेटे के हाथ में टमाटर थमाती हुई कहेगी, ले बेटा, ये टमाटर मैंने अपनी होने वाली बहू के लिए संभालकर रखा था। उससे कहना जिस दिन उसका चूल्हा पूजन हो, इसी टमाटर की सब्जी बनाए।

Monday, July 8, 2013

मुहब्बत का गुमान


वो कहते हैं
सिर चढ़ जाती है मुहब्बत
करने से इजहार बार-बार
कोई उनसे पूछे जरा
क्यों गूंजती है मस्जिद में
पांच वक्त की अजान, और
मंदिरों में घंटे-घड़ियाल...
क्यों उसके सजदे में
हर बार ही झुकता है सिर
क्यों बिना वजह ही सारा दिन
बच्चा मां का पल्लू पकड़े
पीछे-पीछे घूमता है,
क्यों सूरज रोज सवेरे
लाल चूनर ओढ़ाता है धरती को
क्यों हवा के झोंके मदमस्त
किए जाते हैं तरु-पल्लव को
क्यों हर बार मेघ ही शांत करते हैं
धरती की प्यास को
क्यों चकोर सारी रात
तकता रहता है चांद को,
अब बता,
किसे है मुहब्बत का गुमान
तुझे या मुझे....?

Tuesday, June 25, 2013

कुछ इस तरह भी....




आंखें कह रही आंसू से गिरने की मनाही है
अभी मंजर कहां देखा ये एक टुकड़ा तबाही है
संभालों पंख परवाजों, उड़ाने रद्द सब कर दो
नभ में कर रहा कोई अब दौरा हवाई है
---------
उसको क्या पड़ी है जो मेरे आंसू पिरोएगा
जिंदा लाश पर क्योंकर कोई आंखें भिगोएगा
तड़पती आह से राहत जिसे थी मिल रही यारों
नमक छिड़के बिना जख्मों पे, अब कैसे वो सोएगा
-----------
ये तेरा है, वो मेरा है, चलो किस्सा खत्म कर दें
तेरी पहचान हो मुझसे, मुझे तुझमें हवन कर दें
दूरी रास्तों की है, तभी मंजिल पे पहुंचेगी
दिलों की दूरियां पहले दिल में ही दफन कर दें।।

Monday, June 17, 2013

तकिए अपने होते हैं



जिनके कंधों पर सिर रखकर
वो फूट-फूट कर रोते हैं
रिश्तों के मारे कहते हैं
बस तकिए अपने होते हैं!

मन की गांठें धीरे-धीरे
तकिए पर जाकर खुलती हंै
बिन साबुन के सब पीड़ाएं
तकिए पर जाकर धुलती हैं
वो पीते अश्कों का प्याला
आंखें साकी हो जाती हैं
देकर तकिए को दर्द सभी
आंखें अक्सर सो जाती हैं
आंसू की गर्मी से पिघले
सुरमें की कालिख ढोते हैं
रिश्तों के...........

गम के मारों को तकिया
मनमीत सरीखा लगता है
मन के तारों को छू जाता
संगीत सरीखा लगता है
सट जाते हैं हट जाते हैं
चादर के संग बंट जाते हैं
रिश्तों की खींचातानी में
जिनके तकिए फट जाते हैं
उनके दुखड़ों पर जग हंसता
जब भी वो नयन भिगोते हैं
रिश्तों के.............

Friday, June 14, 2013

नए जमाने के डैडी




कभी मां बन जाते हैं
कभी बन जाते हैं दादी
कुछ ऐसे हैं
नए जमाने के डैडी!

नहीं दिखाते आंख
बात-बात पर
परीक्षा में नहीं जगाते
रात-रात भर
दोस्त की तरह दे रहे साथ
नए जमाने के डैडी!

दुनिया के दांव-पेंच
खुद ही सिखा रहे हैं
उलझन से कैसे सुलझे
ये भी बता रहे हैं
बेटे का बायां हाथ
नए जमाने के डैडी!

सूसू करा रहे हैं
पॉटी धुला रहे हैं
बच्चा जरा भी रोया
जगकर सुला रहे हैं
दे रहे मां को मात
नए जमाने के डैडी!

आदर्श का लबादा
अब तो उतार फेंको
बच्चे बड़े हुए हैं
चश्मा हटा के देखो
समझा रहे ‘पिता’ को
नए जमाने के डैडी!


Wednesday, May 29, 2013

दारू के इक गिलास में



चांद भी महबूबा लगता है,
दारू के इक गिलास में
सारा जग डूबा लगता है
दारू के इक गिलास में।

पतझड़ भी सावन लगता है
दारू के इक गिलास में
नाला भी पावन लगता है
दारू के इक गिलास में।

होश-ओ-हवास में मुझको तू
बे-वफा दिखाई देता है,
खुदा सा तू सच्चा लगता है
दारू के इक गिलास में।

बात-बात पर जिद करता
आंखों में आंसू भर लाता,
दिल छोटा बच्चा लगता है
दारू के इक गिलास में।

दोस्त कंपनी देने से
दिन-रात लगें जब कतराने
तब ‘साला’ अच्छा लगता है
दारू के इक गिलास में।

Monday, May 20, 2013

ताज और मुमताज




राग ताज का मत छेड़ो
मुमताज महल रो देती है
तुम अपनी प्रेम निशानी में
एक फूल गुलाबी दे देना
पत्थर को हीरे में जड़कर
मत खड़ी इमारत तुम करना
बस अपनी प्रेम कहानी में
किरदार नवाबी दे देना।।

ऊंची मीनारों पर मुझको
मुमताज दिखाई देती है
सूनापन उसको डंसता है
इक चीख सुनाई देती है
जब मैं तन्हा महसूस करूं
तुम इतना करना प्राणप्रिये
साकी बन जाना तुम मेरे
इक जाम शराबी दे देना।।

कब कहती थी ताज चाहिए
मुमताज प्यार के बदले में
 कहती थी बस प्यार चाहिए
मुमताज प्यार के बदले में
आंगन की छोटी बगिया में
तुम प्रेम पल्लवित कर देना
मैं पुष्प बनूं, तुम भंवरा बनकर
प्यार जवाबी दे देना।।

Saturday, May 11, 2013

क्या तुम मुझसे प्यार करोगे




‘‘नहीं मैं गिरधर की मीरा सी
जो तुझ पर सर्वस्व लुटाऊं
नहीं राम की मैं सीता सी
तेरे पीछे जग बिसराऊं
नहीं प्रेमिका राधा जैसी
श्याम रटूं, श्यामा हो जाऊं
नहीं रुक्मिणी हिम्मतवाली
लोक-लाज का भान न पाऊं
कलुषित चंचल मन है मेरा
इसको अंगीकार करोगे?
टूटा-फूटा प्रेम है मेरा
क्या तुम मुझसे प्यार करोगे?’’

Friday, May 10, 2013

साला एक मच्छर आदमी को......




बात कलियुग में विक्रत संवत 2070 की शुरुआत और सन् 2013 के मई माह की है। तारीख थी ‘11’। गर्मी की ऋतु बाल्यावस्था से किशोरावस्था को प्राप्त हो रही थी। यूं तो यमुना के तीर पर बसे बृज क्षेत्र में बिजली, पानी आदि अनेक कारणों से त्राहि-त्राहि मची हुई थी लेकिन एक अन्य  कारण, जिसके कारण लोगों का जीना दूभर हो चला था, वह था मच्छर। ‘साला एक मच्छर आदमी को .......बनाए हुए था।’ शहरवासियों ने मच्छरों को भगाने के कई हथकंडे अपनाए। रैकेट, कॉइल, क्रीम, हिट आदि अस्त्र-शस्त्रों का इस्तेमाल किया किंतु अदना सा मच्छर आदमी का रक्त चूसकर उसे बीमारियों की सौगात देने से बाज नहीं आ रहा था। कसाब जैसे राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त लोग मच्छर से डंक का शिकार हो चुके थे। जब साम-दाम-दंड-भेद नीतियों से बात न बनी तो ‘दो टूक’ ब्लॉग को एक उपाय सूझा। ब्लॉग ने रातों-रात रणनीति बनाकर (राष्ट्रहित की सुरक्षा को देखते हुए इस रणनीति का खुलासा नहीं किया जा रहा) मच्छरों के सरदार को किडनैप कर लिया। हमारी टीम जानना चाहती थी कि आखिर ऐसी क्या वजह है कि साला एक मच्छर आदमी को......बना रहा है। पहले तो मच्छरों के सरदार ने इनकार किया लेकिन जब हमने ‘थर्ड डिग्री फॉगिंग’ का भय दिखाया तो मरता क्या न करता.....। वह हमें इंटरव्यू देने को तैयार हो गया। प्रस्तुत हैं उस इंटरव्यू के खास अंश-

दो टूक- सबसे पहले तो ये बताइए कि आपकी संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, क्या आपकी सरकार आपको जनसंख्या नियंत्रित करने के लिए नहीं कहती है? 
मच्छर सरदार- जी संख्या तो पहले भी उतनी ही थी, जितनी अब है....फर्क बस इतना है कि पहले हमारी लुगाइयां घरों में छिपी रहती थीं। एक दिन टीवी पर चिपकी कुछ मच्छर लुगाइयों ने महिला जागृति के कार्यक्रम देख लिए। फिर क्या था, बाकी सब मच्छरनियों को ऐसा पाठ पढ़ाया कि सब की सब बगावत पर उतर आईं। कहने लगीं कि इंसान को काटें हम, खून हम चूसें, बच्चे हम पैदा करें, क्रेडिट तुम ले जाओ.....बहुत ना इंसाफी है। वी वांट फ्रीडम। यही वजह है कि अब मच्छरनियां बाहर दिखाई देती हैं जिससे संख्या बढ़ी हुई नजर आती है।

दो टूक- इंसानों द्वारा तैयार किए गए मच्छर मारक उत्पादों का भी आप पर कोई असर नहीं हो रहा है, इसका क्या कारण है? 
मच्छर सरदार- जी हमारे पुरखे तो मर जाया करते थे, लेकिन ये जो नई जनरेशन आई है ना, बहुत होशियार है। कुछ नए मच्छरों ने तो ‘हर माहौल में खुद को कैसे एडजस्ट किया जाए’ इस सब्जेक्ट पर विलायत से पीजी कोर्स किया है। कैसा भी मच्छर मारक उत्पाद लेकर आइए, हमारे युवा साइंटिस्ट की टीम उसका तोड़ निकाल देती है। मच्छरों का मानना है कि इंसान को मूर्ख बनाना बहुत आसान है। मच्छर मारकों से प्रयोग से हम मच्छरों पर तो कोई असर नहीं होता लेकिन इंसान धीरे-धीरे पॉइजन ग्रहण करता रहता है। यानि जो हमारे लिए गड्डा खोदता है वही गड्डे में गिर जाता है।

दो टूक- आप लोग जब भी चाहें, जिसे भी चाहें काट लेते हैं, मौसम-बेमौसम बीमार कर देते हैं....क्या आपका धर्म आपको इस बात की इजाजत देता है? 
मच्छर सरदार- धर्म को बीच में मत लाइए जी। धर्म तो आपका भी कहता है कि मच्छर मारना नहीं चाहिए, पर आप तो हमारी जान के पीछे रात-दिन पड़े रहते हैं। वैसे भी इंसानों का खून इन दिनों हमें डाइजेस्ट नहीं हो रहा। बीते सप्ताह गर्मियों की छुट्टी में शहर घूमने आईं तीन मच्छरियों को उल्टी-दस्त की शिकायत हो गई थी। कह रहीं थी कि हमने तो टेस्ट चेंज करने के लिए ब्लड पीया था, हमें क्या पता था कि यहां के लोगों का ब्लड इतना इम्प्योर है।

दो टूक- कुछ माह पहले खबरों में आया था कि आपके एक साथी ने कसाब को डंक मारा था? इस बात में कितना दम है? 
मच्छर सरदार- अब वो बात जाने भी दो। काहे गढ़े मुर्दे उखाड़ रहे हैं। दरअसल हमारा एक साथी एमबीएस स्टूडेंट का खून चूस-चूस कर बखूबी सीख गया था कि मार्केटिंग कैसे की जाए। उसमे नेम और फेम के चक्कर में कसाब को काटा था। हालांकि हमने उसे बाद में डांटा भी कि ऐसी प्रसिद्धि भला किस काम की जो देश के‘भूतपूर्व दामाद’ को ही काट बैठे। हम देश का खून पीने में विश्वास रखते हैं, देश के मेहमानों का नहीं।
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दो टूक- अगर आपको इंसानों का पीछा छोड़ने का प्रस्ताव दिया जाए तो उसके बदले आपकी डिमांड क्या होगी
मच्छर- हम चाहते हैं कि हमारे लिए हर घर में अलग से मच्छरिस्तान बनवा दिया जाए। आप अपने पोंछे का पानी, सड़ा-गला कूड़ा मच्छरिस्तान में फेंक सकते हैं। हम वहां भिनभिनाते रहेंगे और खाते-पीते रहेंगे। सप्ताह में एक दिन घर का कोई भी सदस्य हमारी मच्छरनियों के लिए एक-दो मिलीग्राम ब्लड डोनेट कर दिया करें, बस.....।

दो टूक- शोध बताते हैं कि आप लोग दिन-ब-दिन ढीठ होते जा रहे हैं। आखिर आप ऐसा क्या खाते हैं जिससे आपकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती जा रही है?
मच्छर सरदार-ये सब आप लोगों का किया धरा है। सोचने वाली बात है कि जब आप लोग मल्टी विटामिन, एनर्जी बढ़ाने वाली दवाएं खाएंगे तो दवाएं खून में मिलेंगी। वही खून हम भी पीते हैं। यानि इनडायरेक्ट वे में आप हमें भी मल्टी विटामिन खिला रहे हैं। ऐसे में हम भला बीमार क्यों पढ़ें?

दो टूक- आपने अब तक  लाखों इंसानों का ब्लड टेस्ट किया है, कोई ऐसा व्यक्ति जिसका ब्लड टेस्ट करना आपकी ख्वाहिश हो..
मच्छर सरदार- जी हमने अब तक इंसानों का ब्लड टेस्ट किया है, अब नेताओं का करना चाहते हैं।

दो टूक- क्या आप अखबार के माध्यम से इंसानों को कोई संदेश देना चाहते हैं
मच्छर सरदार- हां जी, सुनने में आया है कि इंसानी वैज्ञानिक मच्छरों को शुक्राणु रहित बनाने की तैयारी में हैं ताकि धीरे-धीरे मच्छरों की संख्या कम हो जाए। हम ऐसे वैज्ञानिकों को बताना चाहते हैं कि ‘विक्की डोनर’ है ना....।

Saturday, May 4, 2013

हैप्पी वर्ल्ड लाफ्टर डे इन एडवांस



‘‘ गली हंसी रही है, मोहल्ला हंस रहा है। खामोशी हंस रही है, ‘हल्ला-गुल्ला’ हंस रहा है, देखो जी, गोदी का लल्ला हंस रहा है। लस्सी हंस रही है, रसगुल्ला हंस रहा है, तवे पर  लोट-पोट भल्ला हंस रहा है। दुकान हंस रही है, मकान हंस रहा है, नोट देख बनिए का गल्ला हंस रहा है। हाथों की चूड़ियां बिना वजह खिलखिला रही हैं, अंगुली में पहना हुआ छल्ला हंस रहा है, और तो और, सचिन का बल्ला हंस रहा है।’’

Wednesday, April 24, 2013

मैं हो गया बदनाम नेक काम के लिए



बदली हैं कितनी ख्वाहिशें इंसान के लिए 
आंखें तरस रही हैं शमशान के लिए 

इंसान तो इंसान है, क्या दोष उसे दें
मुश्किल हुए हालात अब भगवान के लिए

कुत्ते को पालते हैं वो औलाद की तरह 
दरवाजे बंद हो गए मेहमान के लिए

पैसे को झाड़ जेब से नौकर लगा लिए
दो पल न फिर भी मिल सके आराम के लिए

जागीर दिल की नाम जिसके कर रहा था मैं
वो लड़ रहा मिट्टी के इक मकान के लिए 

जिनके लिए तरसी तमाम उम्र ये आंखें 
आए थे वो मिलने मगर एक शाम के लिए

इल्जाम सारे उसके मैंने अपने सिर लिए
मैं हो गया बदनाम नेक काम के लिए ....



Tuesday, April 23, 2013

संपूर्ण



क्या यही है तुम्हारा पौरुष
यही है हकीकत
इसी दर्प में जी रहे हो तुम
कि हर रात जीतते हो तुम
हार जाती हूं मैं
फिर सुकून भरी नींद लेते हो तुम
सिसकती हूं मैं
जीतना मैं भी चाहती हूं,
सुकून भरी नींद
मेरी आंखों को भी प्यारी है
पर फर्क है, तुम्हारी जीत और मेरी जीत में
घंटों निहारना चाहती हूं तुम्हें
एक निश्चल बच्चे की तरह
सुनाना चाहती दिन भर की बातें
नहीं चाहिए मुझे जड़ाऊ गहने
बस एक बार, एक बार
प्यार से मुस्कुरा दो मेरी किसी नाराजी पर
आॅफिस से लौटते में
कभी लेते आओ महकता गजरा
फिर कैसी खुमारी से भर उठेगा
तन और मन,
अब तक आधा पूर्ण किया है तुमने मुझे
संपूर्णता की परिधि में तन के साथ मन भी शामिल है
बस एक बार,
एक बार बना दो मुझे भी पूर्ण,
जीत जाने दो मुझे भी..
क्योंकि मेरी जीत बिना तुम्हारी जीत कहां
तुम्हारा अस्तित्व मुझसे ही तो संभव है
क्योंकि सिर्फ पत्नी नहीं हूं तुम्हारी
प्रिया हूं, अर्धांगिनी हूं, रचयिता हूं.....

Monday, April 22, 2013

अब हक की नहीं कर्तव्य की बात हो

हर बार यही होता है...दिल्ली में दरिंदगी होती है...संसद में बहस होती है और सड़कों पर गुस्सा। 2...4...6...10 दिन यही चलता है। और फिर आक्रोश पर पानी की बौछार जोश और जज्बे को ठंडा कर देती है। उधर, संसद मौन हो जाती है और रेप पर रार बरकरार रह जाती है। फिर एक गुड़ियां हवस का शिकार बनती है और फिर वही सबकुछ शुरू हो जाता है। ठीक उसी तरह, जिस तरह एक फिल्म को दूसरी बार देखने जैसा होता है। लेकिन...अब ये बहस थमनी चाहिए। सड़कों पर उबाल और संसद में बवाल करने की बजाय जिम्मेदार बनने का वक्त है। नहीं तो आज गुड़िया है...कल मुनिया...और फिर परसों कविता और बबिता के लिए हम ऐसे ही निर्थक ही सरकार के खिलाफ आग उगलते रहेंगे। ये ऐसा क्राइम नहीं है, जिस पर कानून शिकंजा कस सके। ये एक बीमारी है। इसका इलाज जुर्म से पहले होना चाहिए। लोगों को जागरूक होना चाहिए। क्योंकि ये ऐसा जुर्म जिसमें आरोपी को तो सजा मिलती ही है और मिलनी भी चाहिए लेकिन  इस जुर्म के बाद उस पीड़िता को भी जिंदगी भर एक सजा भुगतनी पड़ती है...वह है बेबस और लाचार भरी जिंदगी। इसलिए अब हक की नहीं कर्तव्य की बात हो। 

कविता जन्म लेगी




आज मन उदास है
शायद कोई कविता जन्म लेगी
टूट गई हर आस है
शायद कोई
कविता जन्म लेगी।
न कोई गिला, न कोई शिकायत
फिर भी दबा-दबा सा अहसास है
शायद कोई कविता जन्म लेगी...
रोये भी नहीं हैं इस कदर कि
चेहरे पर छाई वीरानी हो
हंसे भी नहीं है इस कदर
कि जज्Þबातों को हैरानी हो
फिर क्यों ऐसे ख्यालात हैं
शायद कोई कविता जन्म लेगी...


Monday, April 8, 2013

अल्लाह के नाम पर कमेंट दे बाबा!



आदरणीय 
चिठ्ठाधारकों

दिल में व्यथा तो पिछले चार साल से छुपाए था पर अब कलेजा मुंह को आ रहा है सो ब्लॉग पर आपबीती लिखनी पढ़ रही है। बात सोलह आने सही है। समीरलाल जी के ब्लॉग ‘उड़न तश्तरी’ की कसम खाकर कह रहा हूं जो भी कहंूगा सच के सिवाय कुछ न कहूंगा।

बात सन 2008 की है। मैंने नया-नया ब्लॉग बनाया था। तब ब्लॉगिंग नया-नया शगल थी। चूंकि उन दिनों ब्लॉगिंग के बारे में मुझे कुछ ज्यादा जानकारी नहीं थी इसलिए जो भी मन में आता था, लिख देता था। मेरा सहयोग करती थी मेरी पत्नी। उसे कविताओं का शौक चर्राया था। कविता झेल पाना हर किसी के वश की बात नहीं होती इसलिए वह कविताओं पर किसी को सुनाने के बजाय ब्लॉग पर डालती थी। चूंकि तब चिट्ठाधारकों की संख्या ज्यादा नहीं थी (ऐसा मुझे लगता है, जरूरी नहीं आपका भी ख्याल ऐसा हो), सो ‘एनीहाउ’ मेरा ब्लॉग हिंदी के महान चिट्ठाधारकों की पहुंच के भीतर आ गया था। ब्लॉग जगत के बड़े-बड़े महात्मा मुझ बच्चे पर अपनी कृपा करते थे और  उल्टी-सीधी पोस्ट पर भी मेरे उत्साहवर्धन हेतु बढ़िया कमेंट दे देते थे। क्या दिन थे वो भी....। मैं और मेरा ब्लॉग...साथ में ढेर सारे टिप्पणीदाता। मैं बल्लियों उछलता रहता था पर जनाब कभी टिप्पणियों की कद्र न जानी। समीर लाल जी, नीरज गोस्वामी जी , शोभा जी, रंजू भाटिया जी, बालकिशन जी जैसे ब्लॉगर्स अपने कमेंट के माध्यम से मेरे ब्लॉग की शोभा बढ़ाया करते थे, (यकीन न हो तो मेरी 2008 की पोस्ट पर जाकर देख लीजिए) पर वो कहते हैं ना कि ..सब दिन होत न एक समान.....मैं ब्लॉगिंग से दूर होता चला गया, मेरी पत्नी भी। ठीक उसी क्रम में टिप्पणी दाता भी दूर होते गए। न जाने कैसे ब्लॉग में भी गड़बड़ी आ गई और कमेंट वाला आॅप्शन गायब हो गया। फिर एक दिन....सोचा कि क्यों न ब्लॉग अपडेट किया जाए....पोस्ट लिखना फिर से शुरू किया लेकिन टिप्पणियां शुरू न हुईं। कुछ दिन के इंतजार के बाद एकाध टिप्पणी के दर्शन होते तो मन फूला नहीं समाता था। फिर हमारी रचनाएं ‘नई पुरानी हलचल’ और ‘चर्चा मंच’ पर भी चमकी। मैं जितना खुश था उससे कहीं ज्यादा खुश मेरी बीवी। पहली बार नई पुरानी हलचल में अपनी रचना देख उस बावरी ने तो खुशी में मुझे कई फोन कर डाले........अरे ब्लॉग देखा क्या...अब ब्लॉग अपडेट करते रहना.....। कुछ समय बाद पता चला ब्लॉग जगत की नींव ही कमेंट्स हैं। अगर कमेंट्स न होते तो ब्लॉग जगत का क्या हाल होता....। कहने वाले कहते हैं कि पोस्ट लेखक के मन का आईना होती है, मैं कहता हूं कि कमेंट रीडर के मन का आईना होते हैं। अगर मुझे कमेंट्स पर फिल्म बनाने का जिम्मा सौंपा जाए तो उसकी बानगी कुछ इस तरह होगी----
फिल्म का नाम-
‘चलो कमेंट-कमेंट खेलें’
हीरो का डायलॉग- तुम मुझे कमेंट करो, मैं तुम्हें कमेंट करूंगा। 
हीरोइन-तुमने मुझे जो कमेंट्स किए थे, क्या वो सब झूठ थे....क्या तुम्हें मेरी पोस्ट से वाकई प्यार नहीं...। 
हीरो की मां- देख बेटा, ये कमेंट मैंने अपने होने वाली बहू के लिए लिखा है, उसकी पोस्ट पर इस कमेंट को अपने हाथों से कट-पेस्ट करना।
हीरो का बाप- कितने में खरीदा है ये कमेंट...? मेरे बरसों से इकट्ठे किए गए कमेंट्स पर तेरी इस पोस्ट ने जो चांटा जड़ा है ना, उसकी आवाज तेरी पोस्ट को पॉपुलर नहीं होने देगी। 
हीरो की बहन- भैया पिछली राखी पर तुमने मेरी पोस्ट पर सौ कमेंट्स करने का वादा किया था, इस बार भूल मत जाना। 
गब्बर टाइप विलेन- मेरी पोस्ट पर कमेंट कर दे ठाकुर।
भिखारी- अल्लाह के नाम पर कमेंट दे दे बाबा, तेरे बाल-बच्चों की पोस्ट सौ तक चमके।  

Saturday, April 6, 2013

प्यार क्या है

प्यार क्या है
एक आदत सी है
जब पड़ जाती है एक-दूसरे की
तो मिट जाती है जिस्म की पहचान!

प्यार क्या है
एक इबादत सी है
जब करने लगते हैं एक-दूसरे की
तो बन जाते हैं भगवान!

प्यार क्या है 
एक शिकायत सी है
जब हो जाती है एक दूसरे से
तो दिल का घर बन जाता है मकान

प्यार क्या है
एक कयामत सी है
जब टूटती है दो दिलों पर
तो दे देती है या ले लेती है जान!
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Thursday, April 4, 2013

विश यू वैरी-वैरी हैप्पी गर्मी

गर्मी का सीजन एक बार फिर मुबारक हो। हमें पता है कि गर्मी का नाम सुनते ही आपके नाक-मुंह सिकोड़कर एक्सरसाइज करना शुरू कर देते हैं पर अबकी गर्मी को एंजॉय करके देखिए, बहुत मजा आएगा। वैसे भी इस बार आपको गर्मी के फ्लैश बैक(बचपन के दिन) में ले जाने के लिए कई सेक्टर कमर चुके हैं....। अव्वल तो छोटे-छोटे बच्चे गर्मियों में ज्यादा टीवी न देखें, इसका इंतजाम कर दिया गया है। न होगा सेट टॉप बॉक्स....न चलेगा टीवी। जब टीवी नहीं होगा तो लोग मुहल्ले में चौपाल लगाएंगे, महिलाएं बालकनी में खड़ी होकर बतियाएंगी, बच्चे फिर से चोर-सिपाही, लंगड़े छज्जू खेलेंगे....यानि भाईचारे, बहनचारे और बच्चेचारे की भावना का एकदम सॉलिड इंतजाम। अगर फिर भी आप घर में घुसे रहने की फिलॉसफी को प्राथमिकता देने वाले हैं तो  टोरंट पावर है ना। आपके परफ्यूम और पाउडर से सुसज्जित शरीर पर पावरकट ऐसा पसीना बहाएगी कि आप चाहें या न चाहें घर से बाहर निकल ही आएंगे। रात में घर से न निकल पाना आपकी मजबूरी है लेकिन लंबा-चौड़ा एकदम खली के माफिक दिन काटने के लिए आपको मुहल्ले में तांक-झांक करनी पड़ेगी ही। इसलिए बी हैप्पी दिस समर।

Tuesday, March 19, 2013

नए जमाने की कह मुकरियां




देखूं उसको थर-थर कांपू
वो पीछे मैं आगे भागूं
भूल गई सुध अपने तन की
ऐ सखि ब्वॉयफ्रेंड? ना सखि मंकी!
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वो मुझको दुनिया दिखलाता
मेरी हर उलझन सुलझाता
नहीं है कोई उससे ग्रेट 
ऐ सखि ब्वॉयफ्रेंड? ना सखि नेट!
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उसका जादू सब पर भारी
वो भगवन है, हम हैं पुजारी
बिन उसके लाइफ जाती रुक
ऐ सखि ब्वॉयफ्रेंड? ना सखि फेसबुक! 
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उसके जैसा नहीं कोई ज्ञानी
विद्यावान गुणी विज्ञानी
पल में प्रॉब्लम कर देता हल 
ऐ सखि ब्वॉयफ्रेंड? ना सखि गूगल!
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वो मेरा बॉडीगार्ड निराला
है दबंग पर भोलाभाला  
खुद को भूलूं, उसे न भूलूं
ऐ सखि ब्वॉयफ्रेंड? ना सखि सल्लू!

घर बनवावे, कार दिलावे
संग वो हो तो लाइफ बनावे
उसके जैसा हितैषी कौन
ऐ सखि ब्वॉयफ्रेंड? ना सखि ‘लोन’

ज्यों ही मार्च महीना आता
दिल मेरा वो है धड़काता
चुरा ले गया मेरा रिलेक्स
ऐ सखि ब्वॉयफ्रेंड? ना सखि टैक्स

- राजीव शर्मा ‘राज’

Saturday, March 16, 2013

तुम कब रंग लगाओगे




अंबर ने मारी पिचकारी
भीगी धरती की साड़ी
प्रत्युत्तर में धरती ने भी
जमकर के दीन्ही गारी
बैठ झितिज रंगों को घोला
भूली मरजादा सारी
बरजोरी जब होने लागी
नभ ने चुनर दी फाड़ी
भीगा चितवन, भीगा यौवन
तुम कब मुझे भिगाओगे
बीती जाती रुत फागुन की
तुम कब रंग लगाओगे....
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भंवरा भी बौराय गया है
देख कली की अंगड़ाई
गुंजन करके कहने लगा
आई सखी होली आई
पान किया मकरंद भ्रमर ने
कली पे छाई तरुणाई
आलिंगन करने भंवरे का
पवन के संग दौड़ी आई
बेकल है मन, बेसुध है तन
तुम कब अंग लगाओगे
बीती जाती रुत फागुन की
तुम कब रंग लगाओगे.....
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छेड़ रही है शिव को शिवा फिर
दूर भाग शरमाई है
फाग ऋतु की देख खुमारी
शिव ने भांग चढ़ाई है
राधा भी कान्हा को रंगने
बरसाने से आई है
माखन की मटकी में छुपाके
प्रेम रंग भर लाई है
सब ही होली खेलें मिलकर
तुम कब मिलने आओगे
बीती जाती रुत फागुन की
तुम कब रंग लगाओगे....

Thursday, March 7, 2013

अथ श्री महिला बैंक कथा



हमारे वित्तमंत्री जी ने हाल ही में अपने बजट में घोषणा की थी कि देश में महिलाओं के लिए अलग से बैंक खोला जाएगा जिसमें कर्मचारी के तौर पर महिलाएं ही कार्य करेंगी और खाता भी महिलाओं का ही खोला जाएगा। अब चूंकि महिलाएं तो महिलाएं होती हैं फिर चाहें वह बैंक कर्मी हों या हाउस वाइफ, और सभी महिलाओं में कुछेक गुण पूरी तरह समान होते हैं। ऐसे में उस बैंक का नजारा क्या होगा, देखिए हमारी कलम की नजर से। 

दृश्य एक
 दोपहर के 12 बजकर दस मिनट हो रहे हैं। पहली महिला कर्मी ने बैंक में प्रवेश किया....हॉल में सन्नाटा पसरा देखकर कहने लगी, वाऊ! आज मैं सबसे पहले आ गई। फिर मन मसोसते हुए बोली, मुझे क्या पता था यहां कोई नहीं होगा, इससे अच्छा तो मैं पार्लर ही होती आती। खैर....बैटर लक नेक्सट टाइम। तभी बैल बजाकर पानी मंगाया। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के तौर पर नियुक्त एक महिला पानी लेकर आई, आते ही बोली,अरे मैडम आज तो बड़ी जच रही हैं..नया सूट..? सर ने दिलाया क्या..? अरे नहीं रे शांति.....तू सूट-वूट छोड़, ये बता कल मेरे घर काम करने आ सकती है। हमारी कामवाली हफ्ते भर के लिए जा रही है। देख तू बैंक की टेंशन मत ले। यहां हम सब लोग एडजस्ट कर लेंगी। मैंने बाकी सब लेडीज से बात कर ली है। आखिर उन्हें भी तो कभी न कभी तेरी जरूरत पड़ेगी।

दृश्य दो:
 काउंटर पर एक महिला पैसे जमा कराने आती है।....मैडम ये लीजिए पचास हजार रुपये। दो साल के लिए जमा कर दीजिए।
बैंककर्मी: इतने पैसे कहां से बचा लिए?
महिला- बचे कहां मैडम, किटी करके जोड़े हैं, हसबैंड को नहीं बताया।
बैंककर्मी: अच्छा आप किटी करती हैं, वैसे कहां चल रही है आपकी किटी?
महिला-जयपुर हाउस में। बीस महिलाओं की किटी है, दो-दो हजार हर महीने जमा कर करते हैं, पांच सौ रुपये लकी लेडी के होते हैं।
बैंक कर्मी- अच्छा, मेंबर्स पूरे हो गए...?
महिला: हां... ये किटी तो खत्म भी हो गई..अगली किटी अप्रैल से शुरू होगी।
बैंक कर्मी- मैं उसमें मेंबर बन सकती हूं?....वो क्या है कि बहुत दिन से सोच रही थी किटी ज्वाइन करने की, पर कोई अच्छा ग्रुप नहीं मिल रहा। वैसे भी शनिवार को हाफ डे होता है, मैं टाइम पर ज्वाइन कर लूंगी।
महिला: नई ज्वाइनिंग के बारे में तो मेंबर्स से पूछना पड़ेगा।
बैंककर्मी: आप मेरा फोन नंबर ले जाइए, शाम को बता दीजिएगा।
महिला: ठीक है मैं आपको शाम को फोन करती हूं। बाय....
बैंककर्मी: अरे भाभीजी, ये तो बताती जाइए ये पैसे किस एकाउंट में जमा करने हैं....?
महिला: ओर सॉरी, मैं तो भूल ही गई...।
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दृश्य तीन
एक महिलाकर्मी का फोन बजता है....हां...रमोली बोलो..। आज आॅफिस क्यों नहीं आईं...? पता है आज मैं कोफ्ते की करी और भरवां परांठे लेकर आई थी। पूरे दो घंटे लगे थे मुझे लंच तैयार करने में, इस वजह से आज मैं आॅफिस के लिए भी लेट हो गई। सब लोग बहुत तारीफ कर रहे थे......।
रमोली (फोन पर): मीनू आज अर्जेंट काम लग गया था। मैं कल भी छुट्टी पर रहूंगी। हो सके तो मेरी फाइल तुम निबटा लेना।...
तभी एक महिला कर्मी पैसे जमा करने की स्लिप ढूंढती हुई आती है...
बैंककर्मी : पता नहीं कहां रख दी सारी स्लिपें। कोई चीज जगह पर ही नहीं मिलती है। मैं तो बस एक बार मुन्नी की रफ कॉपी बनाने के लिए स्लिप ले गई थी। उसके बाद जाने किसने हवा कर दीं।
मीनू - देखना चार-पांच स्लिप टेबल के नीचे पड़ी हैं, अभी किसी ने इनसे नेलपॉलिश साफ की है। वो देखो स्लिप का एक ढेर कूढ़ेदान में पड़ा है, अंजू और बीनू ने मेरे कोफ्ते स्लिप पर रखकर टेस्ट किए थे।

Monday, March 4, 2013

भगवान की अर्जेंट मीटिंग



विष्णुलोक के राउंड पर गए नारद जी ने जब विष्णु भगवान का मूड आॅफ देखा तो उनसे न रहा गया, छूटते ही बोले, क्या हुआ प्रभु....आपके चेहरे पर 12 क्यों बजे हुए हैं? एनी प्रॉब्लम?....मां लक्ष्मी कहां हैं?...विष्णु जी शेषनाग की शैय्या पर जम्हाई लेते हुए बोले, क्या बताऊं नारद ...कई महीनों से नोटिस कर रहा हूं, अपनी तो डिमांड ही एकदम डाउन हो गई है। कोई पूछता ही नहीं...। आम देवताओं की बात छोड़िए, लक्ष्मी भी उखड़ी-उखड़ी रहती है....। विष्णु जी के मुख से लक्ष्मी जी ने जैसे ही अपना नाम सुना, गुस्से में दौड़ी चली आईं...कहने लगीं...अपनी अलसाई जुबान से मेरा नाम मत लिया कीजिए। जब देखो तब सोते रहते हैं...किसी काम की फिक्र नहीं है। ऊपर से कहते हैं कि डिमांड कम हो गई है। अरे सुस्सी फैलाने के अलावा आपने कौन सा काम किया है जो लोग आपको पूछें......मां लक्ष्मी इससे पहले कुछ और कहतीं, नारद जी बोले...माते इसमें प्रभु का कोई कसूर नहीं। इधर विष्णु भगवान की डिमांड डाउन है, उधर भगवान शिव और ब्रह्मा जी की भी यही शिकायत है कि उन्हें कोई भाव नहीं देता। क्यों न ऐसा किया कि शिवरात्रि ईव पर सभी देवी-देवताओं की मीटिंग आॅर्गनाइज की जाए और उन कारणों पर विचार किया जाए जिसके चलते पब्लिक में  ‘इस्टेब्लिश भगवानों’ की डिमांड कम हो रही है। 

मीटिंग का दृश्य
सभी देवी-देवता अपने-अपने आसन पर बैठे हुए हैं। नारद जी ने मीटिंग का एजेंडा बताते हुए कहा कि जिस-जिस भगवान को जिस-जिस तरह की शिकायत हो वह अपने स्थान पर खड़े होकर बताएं। शुरुआत करते हैं प्रथम पूज्य गणेश के साथ।
गणपति- मैं तो आप लोगों का बच्चा हूं। आप लोगों की कृपा और मुबंई में आयोजित होने वाले गणपति फेस्टिवल की वजह से मेरी डिमांड दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। मुझे किसी तरह की कोई शिकायत नहीं है। आय एम आॅल राइट...। गणेश जी की बात सुन नारद मुनि बोले, वैलडन गणेश....होनहार बिरवान के होत चीकने पात...। आपके जन्म के समय ही हमें पता लग गया था कि आप कुछ अनोखा करेंगे।




(अब आई प्रभु राम की बारी)
रामचंद्र जी- हे नारद! सबसे ज्यादा बुरी गत तो मेरी है। एक अकेली रामनवमी को छोड़ दिया जाए तो दूसरा कोई आॅकेजन नहीं है जब मेरी पूछ होती हो। मैंने अपने प्रचार-प्रसार का जिम्मा हनुमान को सौंपा था। पर वह तो चार कदम आगे निकला, प्रचार के पैसों से ‘मार्केटिंग कैसे की जाए’ पुस्तक खरीद लाया और पुस्तक पढ़ते-पढ़ते मेरी जगह अपना प्रचार शुरू कर दिया। अब गुरू तो गुड़ ही रह गया और चेला चीनी हो गया है। हर जगह ‘जय बजरंग बली-तोड़ दे दुश्मन की नली’ होता रहता है। हर ट्यूसडे को हनुमार के मंदिरों पर भीड़ लगी रहती है और मैं टुकुर-टुकुर देखता रहता हूं। यहां तक कि दशहरे पर भी लोग कहते हैं कि हम राम नहीं रावण बनना चाहते हैं...! ऐसा कलियुग। सोचता हूं ऐसा सुनने से पहले मेरे कानों ने सुनना क्यों न बंद कर दिया....धरती क्यों न फट गई....मैं उसमें समां क्यों न गया....रामचंद्र जी की बात बीच से काटती हुईं सीता मैया बोलीं.....नौटंकी बंद करो। वैसे भी मैं आपको सपोर्ट नहीं करने वाली। बहुत जुल्म किए हैं मेरे ऊपर। तुम्हें तो सिर्फ अपनी मां प्यारी थीं ना। ये तो शुक्र मनाओ कि उन दिनों मैंने किसी महिला संगठन को कॉल नहीं किया वर्ना......रामचंद्र जी बोले....अरी बस भी कर भाग्यवान, कब तक कोसती रहेगी मुझे। तेरी ही बद्दुआ लगी होगी जरूर, तभी तो भक्त भी नहीं पूछते।
नारद जी.........साइलेंस प्लीज। ये मीटिंग ‘कहानी घर-घर की’ खेलने के लिए नहीं आॅर्गनाइज की है। घर की लड़ाई घर में ही सुलटाइएगा।
(अब शिवजी की बारी आई)
शिव जी-हम तो बचपन से ही भोले हैं नारद! हमें कोई पूजे तो ठीक, नहीं पूजे तो ठीक। चूंकि हमारी कृपा से कन्याओं को अच्छे वर की प्राप्ति हो जाती है इसलिए हमारी दुकान चलती रहती है। हफ्ते भर टोटा का सोमवार को पूरा हो जाता है। कलियुग में चूंकि कन्याएं देर से विवाह करने लगी हैं, इसलिए ज्यादा उम्र तक हमें भजती रहती हैं। बची-खुची कसर शिवरात्रि और सावन के सोमवार पूरे कर देते हैं। हां, पर अब पहले जैसी बात नहीं रही......क्या करें, ये तो समय का फेर है। भला हो लाइफ ओके चैनल वालों का, टीवी पर महादेव सीरियल दिखाकर मुझे फिर से लाइम लाइट में ला दिया है। वैसे हमारा सिद्धांत है-‘किस-किस को गाइए, किस-किस को रोइए, आराम बड़ी चीज है, मुंह ढक कर सोइए।’ आप लोग जो एजेंडा बनाएं, हमारी स्वीकृति उसमें अभी से समझिए।

(कृष्ण जी का नंबर आया)
कृष्ण जी-जब तक समोसे में आलू रहेगा, तब तक धरती पर मेरा जादू चालू रहेगा। मैं द्वापर युग में तो छाया ही था, अब कल्कि बनकर कलियुग में भी लोगों के पूजाघरों में राज करूंगा। मेरी पीआर टीम बहुत सशक्त है, धरती पर पहुंचने के लाखों साल पहले ही जन-जन को मेरा पूरा बायोडाटा पता लग गया। नाम, मम्मी-पापा का नाम, मेरी एजूकेशन,  अस्त्र-शस्त्र, मेरा रेजिडेंस.....सब कुछ लोगों को रटा हुआ है। थैंक्स टू माय पीआर टीम। अगर आप लोग चाहें तो मेरी पीआर टीम से पार्ट टाइम सर्विस ले सकते हैं। हां, थोड़ी महंगी है लेकिन डिमांड में बने रहने के लिए पैसे नहीं देखे जाते...। ........कृष्ण जी के बाद एक-एक कर बह्मा जी, सरस्वती मां, लक्ष्मी जी ने विचार रखे।
नारद मुनि- शनिदेव और साईंबाबा नहीं दिखाई दे रहे...? कहां हैं दोनों?
नारदमुनि का सवाल सुनकर दुर्गा मां बोलीं, और कहां होंगे...दोनों अपने भक्तों से घिरे होंगे। उनके पास टाइम ही कहां है मीटिंग-शीटिंग अटेंड करने के लिए। द मोस्ट डिमांडिंग देव हैं दोनों। पता नहीं हिप्नोटिज्म सीख लिया है या शिव खेड़ा की किताब ‘जीत आपकी होगी’ पढ़ ली है...। एकदम से भक्त उनकी तरफ ट्रांसफर हो गए हैं। अपने अध्यक्षीय भाषण के दौरान मैं तो बस इतना ही कहना चाहूंगी कि हम लोगों को भी सॉलिड स्ट्रेटजी बनानी होगी। भक्तों के पास इतना टाइम नहीं है कि सालों तक तप करते रहें। अब दो-चार दिन रिक्वेस्ट करके देखते हैं, अगर डिमांड पूरी नहीं होती तो अगले देवता को फॉलो करने लगते हैं। शनिदेव अपने भक्तों को डरा-धमका कर रखते हैं। सपने में दर्शन देते हैं। साईं बाबा भी चमत्कार करते हैं। तभी तो लोग अब शादी के बाद हनीमून मनाने से पहले शिरडी घूमने जाते हैं...और हम लोग....पूजा के बदले भक्तों को क्या देते हैं...? सिर्फ उनकी परीक्षा?....अपनी दिमाग की बत्ती जलाइए। नए देवी-देवता नई सोच के साथ मार्केट में कदम रख रहे हैं, हम वही घिसे-पिटे आइडियाज पर चलते हैं। फेसबुक यूज करना सीखिए, ट्विटर पर अपने चमत्कारों के बारे में लिखिए...अपना होमपेज बनाइए। फिर देखिए कैसे छाते हैं आप....।

Sunday, February 24, 2013

तकिया कलाम को सलाम


लोगों के प्यार डिफरेंट-डिफरेंट टाइप के होते हैं। कोई कुत्ते, बिल्ली से प्यार करता है तो कोई महबूबा से। लेकिन, कुछ ऐसे भी शख्स होते हैं जिन्हें शब्दों से प्यार हो जाता है। ये शब्दों के साथ प्यार में इस कदर डूब जाते हैं कि चौबीस घंटे एक ही शब्द  की माला जपते रहते हैं। ..और धीरे-धीरे यह शब्द उनका तकिया कलाम बन जाता है। रोजमर्रा की बातचीत के दौरान वे अपनी लाइन की समाप्ति तकिया कलाम के साथ ही करते हैं। जिन लोगों के तकिया कलाम कुछ डिफरेंट टाइप के होते हैं, उन्हें सामाजिक मान्यता मिल जाती है और लोग उनके तकिया कलाम को महात्मा के वचनों की तरह फॉलो करने लगते हैं। उदाहरण के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा अपने प्रचार के दौरान एक कैच वर्ड बहुत ज्यादा प्रयोग में लाते थे, यस वी कैन..(हां हम कर सकते हैं)। धीरे-धीरे यस वी कैन अमेरिकी लोगों के बीच इतना पॉपुलर हो गया कि वहां के लोग आमतौर पर बातचीत के दौरान कहने लगे, यस वी कैन।
वैसे तकिया कलाम का असली प्रोपराइटर कौन है, यह कहना थोड़ा मुश्किल है लेकिन काफी ढूंढ-ढांढने के बाद मिली थोड़ी बहुत जानकारी के मुताबिक तकिया कलाम की शुरुआत नारद जी ने की थी। चूंकि नारद जी के टाइम में न्यूज चैनल तो थे नहीं सो वे देवताओं, असुरों, ब्रह्मलोक, शिवलोक, विष्णुलोक के अलावा मृत्युलोक में खबरें इधर से उधर करने का काम किया करते थे। उन दिनों न्यूज का कोई स्पॉंसर न मिलने के कारण वे ब्रेक के दौरान नारायण-नारायण शब्द का उच्चारण किया करते थे। बस यहीं से शुरुआत हो गई तकिया कलाम की। तकिया कलाम के विचार को अमेरिका के कोई देवी-देवता न हथिया लें, यह सोच उन्होंने सर्वप्रथम इसका पेटेंट कराया। फलत: नारद मुनि जहां भी जाते, अपना तकिया कलाम साथ ले जाते। तकिया कलाम का दौर थोड़ा आगे और बढ़ा। मध्यकाल में अकबर बादशाह को मा-बदौलत का शौक चर्राया। वे हर बात के आगे-पीछे मा-बदौलत नामक शब्द जोड़ दिया करते थे। हालांकि बीरबल को इससे आॅब्जेक्शन होता था लेकिन वे बॉस के आगे कुछ बोलते नहीं थे। वैसे आज के जमाने में मा-बदौलत का अर्थ किसी सभ्य इंसान को गालीनुमा लग सकता है, इसलिए यह तकिया कलाम समय के साथ विलुप्त हो गया। बादशाह अकबर चले गए तो तकिया कलाम के साम्राज्य को और आगे बढ़ाने की बारी आई। एक-एक कर कई तकिया कलाम मार खां पैदा हो गए। अपनी सुविधा के अनुसार कोई एक शब्द चुन लिया और वाक्य के पीछे चस्पा कर दिया। कोई कहने लगा ‘जो है सो है’ तो किसी को ‘समझे के नहीं समझे’ कहने में मजा आने लगा। किसी का तकिया कलाम बना, ‘क्या कहते हैं’ तो कोई कहने लगा हां जी...। तकिया कलाम की दुनिया में जिन महान हस्ती का नाम सबसे ज्यादा लिया जाता है, उनका नाम है धमेंद्र। उनका फेवरेट तकिया कलाम है, कुत्ते कमीने मैं तेरा खून पी जाऊंगा...। यह तकिया कलाम लड़ाकू लोगों को बहुत पसंद आता है। वैसे हमारे देश में राहुल गांधी के पापा (स्व. राजीव गांधी) का तकिया कलाम भी वर्ल्ड फेमस रहा है, हम देख रहे हैं...हम देखेंगे। उनका तकिया कलाम उनकी पार्टी मुंह से बोलने के बजाय फॉलो कर रही है और देश में महंगाई की मार देख रही है। इसी तरह ‘हास्टा ला विस्टा, बेबी’ (अलविदा, बेबी) वाक्य हॉलीवुड अभीनेता अर्नोल्ड श्वार्जनेगर ने अपनी एक फिल्म में दुश्मनों को उड़ाते हुए यह कुछ ऐसे बोला के यह जुमला लोक संस्कृति का हिस्सा बन गया।

टीवी के हिट तकिया कलाम
- अररररररर- दक्षाबेन (क्योंकि सास भी कभी बहू थी, स्टार प्लस)
-कान्हा जी झूठ न बुलवाएं- चंदा (उतरन, कलर्स )
-ओह मां, माताजी- दयाबेन (तारक मेहता का उल्टा चश्मा, सब टीवी)
-जो होता है वो दिखता नहीं, जो दिखता है वो होता नहीं - केडी पाठक (अदालत, सोनी)
-जो बुरा न समझे, भला न समझे, वो कलावती को क्या समझे- कलावती(लागी तुझसे लगन, कलर्स)
- वाट लग जाएगी- प्रभु (डोर, स्टार प्लस)
- झूठ तो मैं बोलती नहीं- मालती (सपना बाबुल का बिदाई, स्टार प्लस)
- पापा कसम- बृज पांडेय (लापतागंज, सब टीवी)
- साफ कहो, सुखी रहो.....हंबे- इमरती देवी ( कैरी- रिश्ता खट्टा मीठा, कलर्स)
- राम ही राखे-नानीजी (उतरन, कलर्स)
- हैलो हाय, बाय-बाय- मनोरमा (इस प्यार को क्या नाम दूं)

क्यों हुई तकिया कलाम की उत्पत्ति
जिस तरह तकिया लगाने से सोना आसान हो जाता है उसी तरह तकिया कलाम लगाने से बोलना आसान हो जाता है। तकिया कलाम की उत्पत्ति के पीछे इसी टाइप की कोई सोच रही होगी। प्राचीन काल को छोड़ दिया जाए तो वर्तमान काल में कोई महान नेता अपनी स्पीच भूल गए होंगे। वे बीच-बीच में कुछ न कुछ शब्द जोड़ने लगे होंगे...या फिर कोई टीचर बच्चों को पढ़ाते-पढ़ाते चैप्टर भूल जाती होंगी और बीच-बीच में बच्चों से कहने लगती होंगी, आई बात समझ में। इसलिए पैदा हो गए तकिया कलाम।

Sunday, February 17, 2013

कैसा हो कलियुग का बसंत



वाऊ! इस बार बसंत पर कितना अनूठा दृश्य दिखाई दे रहा है। बर्फीली हवाएं। तड़ातड़ पड़ती बूंदे। मन में तो नहीं पर हां तन में सिहरन। कीचड़-खाचड़ से भरे बाग-बगीचे। टूटी सड़कों में धसते प्रेमी-प्रेमिकाओं के पैर। मानो धरती ने इस बार कुछ अनोखा ही रूप धारण कर लिया है। आखिर इस नए रूप का क्या कारण है और बसंत में बेवजह बारिश बरसने की ठोस वजह क्या है, यह जानने के लिए हमने स्वर्ग लोक को फोन मिलाया, वहां से जो जवाब आया....प्रस्तुत है। 

‘हैलो...हम दो टूक ब्लॉग से बोल रहे हैं। दरअसल हमें बसंत के बदले हुए रूप पर स्टोरी लिखनी है। क्या कामदेव सर से बात हो सकती है।’ हमारी बात कम्प्लीट होते ही उधर से आवाज आई... प्लीज होल्ड आॅन....रिसेप्शनिस्ट अप्सरा ने स्वर्ग के भीतर फोन ट्रांसफर कर दिया। फोन बसंत रितु के असिस्टेंट देव ने उठाया...। हां, बताइए क्या बात है...‘जी हमें कामदेव सर से बात करनी है...’...सर तो छुट्टी पर हैं, मुझे बताइए क्या बात है....‘सर छुट्टी पर हैं तो उनकी जगह बसंत रितु का डिर्पाटमेंट कौन देख रहा है...?’ आपको क्या काम है...? जी हमें स्टोरी लिखनी है....हमारे इतना कहते ही असिस्टेंट मैनेजर बोला, अच्छा आप कुछ मसाला तलाश रहे हैं...? जी नहीं....हमें बसंत के बदले हुए रूप के बारे में कुछ ठोस तथ्य प्रस्तुत करने हैं.....सो प्लीज आप हमारी बसंत के एचओडी से बात करा दीजिए.....। असिस्टेंट मैनेजर बोला, काम सर वेलेनटाइन डे के कारण दिन-रात जॉब पर थे। उन्होंने पिछले पंद्रह दिन से छुट्टी नहीं ली थी। इस वजह से उन्हें काफी थकान महसूस हो रही थी। अब वे कुछ दिन की छुट्टी पर चले गए हैं। चूंकि इन दिनों इंद्र सर खाली रहते हैं इसलिए उन्हें काम सर की जगह ड्यूटी पर लगाया गया है। आप उनसे ही बात कर लीजिए।...

हैलो इंद्रदेव जी...क्या आप हमें बताएंगे कि इस बार बसंत का यह रूप कुछ अलग-अलग सा क्यों दिखाई दे रहा है? क्या आप बसंत को किसी नई रितु में परिवर्तित करना चाहते हैं या आसमान में पानी का टैंकर लुढ़क गया है?
 इंद्रदेव....हे भद्रे! ऐसा नहीं है...। दरअसल हम जो कुछ भी कर रहे हैं सब कुछ कामदेव ने ही हमने करने के लिए कहा था। वे छुट्टी पर जाते-जाते हमको ‘छह सूत्रीय बासंती योजना’ लिखकर दे गए थे। हम उसी को अमलीजामा पहना रहे हैं। हो सकता है कि इस बदले हुए मौसम के पीछे विरोधियों का हाथ हो। यह भी हो सकता है कि रूस में उल्कापिंड गिरने से धरती पर बारिश हो रही हो। यह भी हो सकता है कि नर्कलोक में अफजल गुरू रो रहे हों।


 दो टूक - अच्छा तो इंद्रदेव आप बता सकते हैं कि वह छह सूत्रीय योजना क्या थी जो कामदेव ने आपको बताई थी।
इंद्रदेव- ‘पवन चलाना, बूंदों से मन को रिझाना
मौसम में हो परिर्वतन, खिले जाए तन और मन
प्रेम के तीर छोड़ना, दिल को दिल से जोड़ना’
कामदेव इन छह कामों को बड़े ही बोरिंग तरीके से हौले-हौले करते थे। मैंने सोचा कि क्यों न आज की फास्ट लाइफ में इन्हें फास्ट तरीके से अंजाम दिया जाए। और फिर मेरा वर्किंग कॉन्सेप्ट कामदेव के कॉन्सेप्ट से थोड़ा डिफरेंट है....जो भी करो फास्ट करो। डोंट बी स्लो। इसलिए मैंने स्पीड में बारिश की। हवा इतनी ठंडी चलाई कि लोगों के तन-मन दोनों खिल गए। उन्हें बसंत में सावन की याद आ गई। जब बारिश होगी और तेज हवा चलेगी तो नेचुरल है कि मन में पपीहा बोलने लगेगा। रोड पर पानी भर गया। लड़कियों की स्कूटी घिरघिराने लगी। लड़के हेल्प करने को आए....दिल से दिल जुड़ गए। अब इसमें मेरी क्या फॉल्ट है जो प्रेम के तीर से दिल से ईलू-ईलू की अवाज आने के बजाय  ‘बसंत में मार डाला’ की आवाज निकलने लगी।

 दो टूक - पर इंद्रदेव, ना कोयल कूक रही हैं ना पहीहा बोल रहा है। न आम की डाली बौराई है। क्या इस बारे में आपसे जवाब तलब नहीं किया गया?
इंद्रदेव-एक तो मैंने कामदेव का काम आसान किया, उस पर आप मुझ पर ही तोहमत लगा रहे हैं। आप तो ठीक वैसे ही सवाल कर रहे हैं जैसे भारत में हर विस्फोट के पीछे पाक आतंकवादियों का हाथ तलाशा जाता है।

 दो टूक - कहीं ऐसा तो नहीं कि धरती के बसंत पर किसी और ग्रह का मौसम डाका डालने की फिराक में हो। और उसने ऐसा करने के लिए आपको रिश्वत दी हो।
इंद्रदेव....डोंट निकाल बाल की खाल यानि बाल की खाल मत निकालिए। जो हमसे करने के लिए कहा गया, हमने वही किया। हमारे पास कौन ही बसंत की डिग्री है। अगली बार हमें इस सीट पर बिठाया गया तो शॉर्ट टर्म बासंती कोर्स करके आएंगे

 दो टूक - इंडियन सड़कें वैसे ही टूटी-फूटी हैं, उस पर बसंत की प्यारी-प्यारी रितु में कीचड़-खाचड़ किस उदद्ेश्य से की गई?

इंद्रदेव-ताकि प्रेमी-प्रेमिकाएं सड़क पर फिसल जाएं और गाना गाएं...आज रपट जाएं तो हमें ना उठइयो....। ....और फोन डिस्कनेक्ट हो गया।



Friday, February 8, 2013

शाहजहां की मॉडर्न लव स्टोरी



दुनिया भर के हाई प्रोफालइ प्रेमियों, लो प्रोफाइल लवर्स, मीडियम, सड़कछाप, आवारा मजनुओं से क्षमा मांगते हुए....हां तो जनाब अगर आज मुमताज महल जिंदा होती और शाहजहां और मुमताज की आंखें फरवरी के हॉट सीजन में चार होतीं तो क्या नजारा होता....। 
(बात पता नहीं कब की है चूंकि दिल से बनाई गई है इसलिए जब आपका मन हो तब की ही मानिए.....) 
शाहजहां के पास अकूत दौलत थी, सो उन्होंने दयालबाग या कमला नगर टाइप की किसी पॉश कॉलोनी में कई एकड़ जगह घेरकर अपन बंग्लो बनवा लिया था। मुमताज महल की अम्मी का घर ढोलीखार में था। (मान लीजिए)...। मुमताज महल अंग्रेजी की ट्यूशन लेने ढोलीखार से संजय प्लेस अपनी एक्टिवा पर आया करतीं थी। वेलेनटाइन की पूर्व संध्या पर शाहजहां का मन हुआ कि चलो सदर की सैर की जाए, देखा जाए कि फिजा में प्यार की कितनी महक मार रही है। दूसरी ओर मुम्स (मुमताज की सहेलियां प्यार से मुमताज को मुम्स कहकर बुलाती थीं) अपनी स्कूटी से अंग्रेजी के टीचर के लिए गुलाब खरीदने निकली थीं। अम्मी ने पैसे तो बेसन और मूंग की दाल लाने के लिए दिए थे पर मुम्स का पहला क्रश तो अंग्रेजी के टीचर ही थे ना। मुम्स ने सोचा कि वेलेनटाइन डे पर गुलाब का फूल बहुत महंगा मिलेगा सो एक दिन पहले ही खरीद लिया जाए। मुम्स को क्या पता था कि गुलाब का तो बहाना है दरअसल किस्मत को शाहजहां को मुमताज से मिलवाना है। आगे-आगे मुम्स की स्कूटी, पीछे-पीछे शाहजहां की बीएमडब्ल्यू....एमजीरोड के जाम को चीरते हुए दोनों बढ़े चले जा रहे थे सदर की तरफ। मुम्स को हेलमेट लगाने की आदत नहीं थी। उस दिन मुंह पर कपड़ा भी नहीं बांधा था... बाल गीले थे इसलिए चोटी नहीं बनाई थी। टॉप कुछ टाइट था लेकिन सोबर लग रहा था। जींस पर टैटू बना हुआ था। बहुत स्वीट लग रहीं थी उस दिन, इसलिए स्टाइल भी कुछ ज्यादा मार रहीं थी। फर्राटे से स्कूटी दौड़ाते हुए चली जा रही थी अपनी धुन में। तभी मुम्स को लगा कि स्कूटी कुछ प्रॉब्लम दे रही है। दरअसल उमसें पेट्रोल खत्म होने वाली थी। एक बारगी उनकी स्कूटी बीएमडब्ल्यू से टकराते-टकराते रह गई, शाहजहां पहले तो कुछ नहीं बोले लेकिन जब स्कूटी दूसरी बार टकराई तो शाहजहां से नहीं रहा गया, वे गाड़ी का शीशा उतारते हुए बोले, ‘मोहतरमा, ठीक से स्कूटी चलाइए।’ तभी स्कूटी बीएमडब्ल्यू की हैडलाइट से जा टकराई। शाहजहां का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया, वे बंद शीशे में से ही चीखे, गुस्ताख लड़की, देखती नहीं तूने क्या कर दिया। गाड़ी का इंश्योरेंस भी नहीं है....। दूसरी तरफ मुम्स एक्टिवा खराब होने के कारण आॅफ मूड में थी, शाहजहां का गुस्सा उन्हें बर्दाश्त नहीं हुआ। वे एक्टिवा से उतरीं और शाहजहां पर दहाड़ीं, अमीरजादे....ये सड़क तुम्हारे अब्बू ने नहीं बनवाई है...। हिम्मत है तो बाहर आकर बात करो...। शाहजहां बाहर निकले...मुम्म भी एक्टिवा से उतरीं, दोनों की आंखें चार हुईं.....बगल वाली दुकान में जोर-जोर से गाना बज रहा था....‘उनसे मिली नजर कि मेरे होश उड़ गए’, मुम्स में अचानक से नजाकत आ गई, वे बोलीं, हाय अल्लाह! ऐसे क्या देख रहे हो...। तभी शाहजहां के मोबाइल की रिंगटोन बजी, ‘पहली-पहली बार जब प्यार किसी से होता है..’, दोनों एक दूसरे को देख ही रहे थे कि तभी रोडसाइड भिखारी आकर शाहजहां से बोला, ‘भगवान दोनों की जोड़ी को सलामत रखे, दो रुपया दे दे बाबा।’ शाहजहां किसी भिखारी की कहां सुनने वाले थे। वे तो मुमताज के प्यार में भिखारी बन गए थे जो सरेराह प्यार की भीख मांग रहे थे। कुछ ही देर में रोड के चारों तरफ भीड़ इकट्ठी हो गई। फॉरनर्स ने सोचा कोई इंडियन तमाशा है इसलिए रोड पर पैसे फेंकना शुरू कर दिया। किसी ने बजरंग दल वालों को फोन कर दिया कि दो प्रेमी सदर में बीचों-बीच प्यार की पींगे बढ़ा रहे हैं जरूर विरोधी दल ने खेल खेला है। फिर क्या था, पहुंच गए डंडा लेकर। माजरा बढ़ता देख ट्रैफिक पुलिस आई और गुर्राई, अबे ओ....लड़की को रोड पर छेड़ता है, तुझे पता नहीं इन दिनों लड़कियों को छेड़ना कितना सेंसेटिव इश्यू है। किसी तरह मामला सुलटा और शाहजहां ने मुमताज को लिफ्ट देने के बहाने गाड़ी में बैठा लिया। गाड़ी का ड्राइवर भी कम शातिर थोड़े ही था, मुम्स के गाड़ी में बैठते ही बोला, ‘भाभी जी जब तक है जान के गाने चला दूं।’ मुमताज शर्मा कर रह गईं। यहीं से शुरुआत हो गई शाहजहां और मुमताज की प्रेम कहानी की।
गिफ्ट जो शाहजहां ने मुमताज को दिए

- लाल गुलाब से भरा गार्डन।
- मुमताज के नाम का मल्टीप्लेस जिसमें शाहजहां मुमताज की लव स्टोरी ही चला करती थी।
- रोड का नामकरण मुमताज के नाम पर हुआ।
- मुमताज के नाम पर शॉपिंग मॉल जिसमें लवर्स को चॉकलेट्स, गिफ्ट्स, टैडी बियर्स पर डिस्काउंट मिलता था।
- राजीव शर्मा ‘राज’

Tuesday, February 5, 2013

मुहब्बत का तजुर्बा



खुद को बर्बाद करने का तजुर्बा हमसे कोई सीखे
जिंदगी खाक करने का तजुर्बा हमसे कोई सीखे
मुहब्बत की है मैंने जानता हर शख्स बस्ती का
मगर अंदाज क्या हो, ये तजुर्बा हमसे कोई सीखे
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नहीं आसान उसका रहनुमाई यूं ही कर देना
खुदा की सी खुदाई यूं ही कर देना
कि रोये कई दफा हैं वो सनम के दर पे जी भरके
मगर फरियाद क्या हो, ये तजुर्बा हमसे कोई सीखे
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सुना है तुमने भी, मैंने भी, उसने और इसने भी
मुहब्बत से बड़ा कोई सितम वो दे नहीं सकता
ये दरिया आग का है डूबकर तो सब ही जाते हैं
मगर जज्बात क्या हों, ये तजुर्बा हमसे कोई सीखे

- राजीव शर्मा ‘राज’ 

Tuesday, January 29, 2013

तुम्हारी याद


लो, अबकी फिर से भूल गए अपनी यादें साथ ले जाना
कितनी बार कहा था यादों का बैग छोड़ मत जाना 
बहुत परेशान करती हैं मुझे पीछे से...
तितलियों की मानिंद सारा दिन उड़ती रहती है  दिल के बागीचे में
जीवन-कुसुम पान करके फूलती जा रही हैं दिन-ब-दिन
हठी इतनी कि हर वक्त उनकी ही सुनो..
कुछ भी तो नहीं करने देती मेरे मन का सा। 
सुबह होते ही बैठ जाती हैं मेरे सिराहने
भगाने पर घुस जाती हैं रजाई के भीतर
और गुदगुदाती हैं देर  तक...
डंडा लेकर भगाती हूं तो छिप जाती हैं यहां-वहां
सोचती हूं चलो अब कुछ देर को तो शांति मिली 
तभी पीछे से आकर धौला देती हंै, कहती हैं धप्पा।
अब तो डरती भी नहीं आंखें  दिखाने पर 
कुछ ज्यादा ही चढ़ गई हैं सिर
कल ही मेरे पैर के नीचे आते-आते रह गई वो याद 
जब पहली बार रेस्टोरेंट में तुमने पकड़ा था मेरा हाथ 
और कहा था, अच्छी लग रही हो...
अब बताओ कैसे संभालू यादों का ढेर 
हर बार आते हो, दो-चार गट्ठर और बढ़ा जाते हो। 
इस बार आओ तो बोर्डिंग का फॉर्म भी साथ लेते आना
यादों को कर देंगे एडमिट दो-चार साल के लिए....
या फिर बड़ा सा फ्रेम लेते आना 
यादों की पेटिंग बनाकर टांग लेंगे उम्र की दीवार पर 
अगर यह भी संभव न हो तो उन्हें बोरे में बंद करके 
पटक देना टांड़ पर... 
हर साल सफाई के दौरान बेच दिया करूंगी कबाड़ी को पुरानी यादें 
अगर इतना भी न कर सको 
तो चलना मेरे साथ सुनार के पास
कसौटी पर घिसकर बता देगा उनका मोल
सुनहरी यादों में लड़ी में पिरो बनवा लूंगी नगमाला
या फिर ऐसा करना 
कुछ मत करना 
वक्त के साथ ये खुद-ब-खुद मैच्योर हो जाएंगी 
जब इन्हें भी किसी अपने की याद सताएगी 
अभी हमारे सहने के दिन हैं, इनके खुश रहने के दिन हैं
इनकीं आंखों में सपने हैं, अरमान हैं, हमारी यादें अभी-अभी हुईं जवान हैं...। 

Friday, January 11, 2013

कुछ इस तरह भी



मेरे दिल की किताबों में गुलाबों की लटक बाकी
कभी इतरा के जो झटके थे बालों की झटक बाकी
इशारों से बुलाती थीं उन आंखों की मटक बाकी
मुहब्बत की कली खिलने में थोड़ी सी चटक बाकी
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मेरा इजहार है बाकी तेरा इनकार है बाकी
मेरा इसरार है बाकी तेरा इकरार है बाकी
मेरे आंगन तेरी पाजेब की झनकार है बाकी
अभी तो प्यार की पहली-पहल तकरार है बाकी
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तेरी तस्वीर दिल-ए-दुनिया में हर सू अभी बाकी
खिले हैं इश्क-ए-गुल गुलशन में खुश्बू अभी बाकी
मुझे मदहोश कर दे हुस्न का जादू अभी बाकी
तुझमें मैं अभी बाकी, मुझमें तू अभी बाकी