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Tuesday, July 29, 2008

तब धूप खिलेगी आँगन में



तब धूप खिलेगी आँगन में

जब चिड़िया के छोटे बच्चे चोंच से दाना खायेंगे
जब गाँव की छोटी नहर में बच्चे नंगे बदन नहाएँगे
हर रात आग को घेर लोग जब आल्हा-ऊदल गायेंगे
तब धूप खिलेगी आँगन में...
जब बसंत में खेतों में पीली सरसों फूलेगी
जब सावन में सखियाँ मिलकर पेड़ों पर झूला झूलेंगी
जब बारिश के पानी से मिट्टी में खुशबु आएगी
तब धूप खिलेगी आँगन में....
सूरज अब भी निकला करता है पर धूप अभी मुरझाई है
जब से दूरी बड़ी दिलों में, धूप लगे अलसाई है,
पर एक दिन ऐसा आएगा जब फर्क न होगा इंसा में मानवता होगी एक जात,
हर दिन तब रंग उडेगा और दीप जलेंगे सारी रात,
खुशियाँ झोली में आएँगी और प्यार की जब होगी बरसात
तब धूप खिलेगी आँगन में, तब धूप खिलेगी आँगन में.....