www.hamarivani.com

Monday, April 22, 2013

अब हक की नहीं कर्तव्य की बात हो

हर बार यही होता है...दिल्ली में दरिंदगी होती है...संसद में बहस होती है और सड़कों पर गुस्सा। 2...4...6...10 दिन यही चलता है। और फिर आक्रोश पर पानी की बौछार जोश और जज्बे को ठंडा कर देती है। उधर, संसद मौन हो जाती है और रेप पर रार बरकरार रह जाती है। फिर एक गुड़ियां हवस का शिकार बनती है और फिर वही सबकुछ शुरू हो जाता है। ठीक उसी तरह, जिस तरह एक फिल्म को दूसरी बार देखने जैसा होता है। लेकिन...अब ये बहस थमनी चाहिए। सड़कों पर उबाल और संसद में बवाल करने की बजाय जिम्मेदार बनने का वक्त है। नहीं तो आज गुड़िया है...कल मुनिया...और फिर परसों कविता और बबिता के लिए हम ऐसे ही निर्थक ही सरकार के खिलाफ आग उगलते रहेंगे। ये ऐसा क्राइम नहीं है, जिस पर कानून शिकंजा कस सके। ये एक बीमारी है। इसका इलाज जुर्म से पहले होना चाहिए। लोगों को जागरूक होना चाहिए। क्योंकि ये ऐसा जुर्म जिसमें आरोपी को तो सजा मिलती ही है और मिलनी भी चाहिए लेकिन  इस जुर्म के बाद उस पीड़िता को भी जिंदगी भर एक सजा भुगतनी पड़ती है...वह है बेबस और लाचार भरी जिंदगी। इसलिए अब हक की नहीं कर्तव्य की बात हो। 

No comments: