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Thursday, August 7, 2008

पप्पू कांट डांस साला



बबलू रो रहा है। पिंटू रो रहा है। बंटू रो रहा है है । चिंटू रो रहा है। सब के सब एक ही बात पर रो रहे है....हम पप्पू क्यों नही हुए. मम्मी आपने हमारा नाम पप्पू क्यों नही रखा. मम्मी अपने चिंटू-पिंटू को समझा रही है , बेटा तू जब पैदा हुआ तब चिंटू-पिंटू नाम का सीज़न था. जब तेरी ताई के बच्चे पैदा हुए तब चुन्नू-मुन्नू नाम का सीज़न चल रहा था. जब तेरी चची के बच्चे पैदा हुए तब सोनू-मोनू नाम का सीज़न प्रकट हो गया और जब तेरे पापा पैदा हुपे तब लल्लू-बिलल्लू नाम का सीज़न जोरों पर था.बेटा हर चीज़ का एक सीज़न आता है. कभी नोट का सीज़न तो कभी वोट का सीज़न, कभी नाम का सीज़न तो कभी दाम का सीज़न. कभी भोलेबाबा का सीज़न तो कभी साईराम का सीज़न. कभी साँप का सीज़न तो कभी 'सीडी' का सीज़न. ऐसे ही इस बार पप्पू का सीज़न आया है. पर मैं पप्पू वाले सीज़न में पैदा क्यों नही हुआ..? बेटे ने ठुनकते हुए पूछा.., और आपको पता है अब तो पप्पू भी इंटेलिजेंट हो गया है...हर साल पास होने लगा है. उसके पास होने पर चॉकलेट बांटी जाती है..मेरे पास होने पर तो आप और पापा रेस्टोरेंट चले जाते हो जहाँ आप दोनों खाते रहते हो और मैं देखता रहता हूँ.पर बेटे पप्पू-पप्पू होता है और तुम..तुम...मैंने बेटे की जिज्ञासा शांत करते हुए कहा.देखो, भले ही पप्पू पास होने लगा है, पप्पू के पास भले ही नोटों की गद्दी है...पर पप्पू कांट डांस साला...मेरे इतना कहते ही चिंटू खामोश हो गया. उसे समझ आ गया था की सरकार की तरह सीज़न भी रंग बदलते रहते हैं. जहाँ सरकार है, वहां तकरार है. जहाँ तकरार है वहां gaddiyon की बौछार है, जहाँ गद्दियों की बौछार है, वहां करार है...जहाँ करार है अंत में वहीँ सरकार है. बात घूम फ़िर कर वहीँ आनी है. फ़िर चाहे चुन्नू-मुन्नू हो या चिंटू-पिंटू. नाम में क्या रखा है साहब, सब सीज़न का खेल है.सीज़न है तो पप्पू भी पास है वरना पप्पू फ़ैल है

आठ के ठाठ हैं बन्धु

08-08-0 8
आठ के ठाठ हैं बन्धु
बाकी सब बकवास
जब तक आठ के घूँट न उतरे
बुझे न तब तक प्यास
क्यों डरता है 08 से प्यारे
'आठ' है जब तक साथ
भूल जायेगा खौफ 08 का
खूब जमेगी रात