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Thursday, July 31, 2008

ताज में सतरंगी चादर

ये आस्था का सैलाब था या बेपनाह मोहब्बत को सलामी। जो शाहजंहा की शिद्दत में हजारों लोग सिर झुकाने पहुचे। मौका था बादशाह शाहजंहा के ३५३ उर्स का। इस दौरान ८०० फीट लम्बी चादर चढाई गई।

क्षितिज

श्वेत पंखुडियों सा बिखरा जीवन
आओ भर दो रंग इसे तुम पुष्प बना दो॥
शब्द-शब्द है टूटा, जीवन छंद अधूरा
बनूँ प्रणय का राग मुझे तुम अधर सजा लो....
तुम बिन मिटटी की काया का अस्तित्व कहाँ
काया के बनके प्राण परिचय बोध करा दो॥
भिक्षुक हूँ लेकिन भीख प्रेम की मत देना
सर्वस्व मिटा दो मुझको ख़ुद में समां लो...
जीवन की हर स्वांस समर्पित तुमको ही
दासी समझो या मस्तक का अभिमान बना लो ...
युगों-युगों का इंतजार स्वीकार मुझे,
धरती कहती है गगन से केवल क्षितिज दिखा दो....