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Tuesday, November 20, 2012

जिंदगी




विचारों का अधूरा मंथन
कभी प्रेम, समर्पण, कभी अनबन
जिंदगी- एक अंतरद्वंद!
थरथराहट बर्फीली पवन की
कभी रेगिस्तानी तपन
कभी बेमौसम बरखा, कभी सूखा सावन
जिंदगी- गूढ़ प्रश्न!
कभी टीस भरा दर्द, कभी घाव की जलन
एक अनजाना दर्द, कभी कांटों भरी चुभन
जिंदगी-बुरा स्वप्न!
संभवत:
खुशी का एक क्षण, धरती को छूता गगन
नई उमंगें, एक मतवालापन
जिंदगी- शेष जीवन!

-राजीव शर्मा

Monday, November 12, 2012

उल्लू जी पधारो म्हारे देस



हे उल्लू जी साल भर तक हमने आपसे जो कुछ भी अंट-शंट कहा उसके लिए सॉरी। बड़ी भारी भूल हो गई। दो दिन बाद दीवाली है। दीवाली पर सूटेड-बूटेड होकर लक्ष्मी मैया के साथ आप हमारे घर पधारें। हमें आशीष दें। अगली सुबह लक्ष्मी मैया को हमारे घर रहने दें और आप वापस जंगल में चलें जाएं तो हम पर आपकी बड़ा कृपा होगी। 
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देखा जाए तो हमारा हिंदुस्तान उल्लू प्रधान देश है। यहां हर शाख पर उल्लू ही उल्लू दिखाई देते हैं, खासतौर से राजनीति नामक वृक्ष की शाखाओं पर। नाहक ही सरकार ने मोर को  राष्ट्रीय पक्षी घोषित कर दिया। अगर राष्ट्रीय आयटम घोषित करने का विभाग हम जनता जर्नादन हाथ में होता तो हम निश्चित रूप से उल्लू को राष्ट्रीय पक्षी बनाते। हर क्वालिटी के, हर साइज के, हर चौखटे के, हर कलर के उल्लू....किस्म-किस्म के उल्लू। उल्लू को ढूंढने के लिए हमें जंगलों की खाक नहीं छाननी पड़ती। कोई संसद की छत पर बैठा दिखाई देता तो कोई विधान सभा की मुंडेर पर विपक्षी को घुन्ना कर देख रहा होता। एक को बुलाते-थोक में आते। खैर....जाने दीजिए हम दीवाली के पावन मौके पर किन फेक उल्लुओं की बात करने बैठ गए। अब आॅरिजनल उल्लुओं पर आते हैं। आज हम जिस उल्लू की बात आपको बताने जा रहे हैं उसकी महिमा अपरंपार है। उसके बिना मिथ्या अर्थ व्यववहार है। वही धन का आधार है। कहने को तो लक्ष्मी की सवारी है लेकिन सारे पक्षियों पर भारी है। कलियुग के समय में उल्लू की महिमा का जितना बखान किया जाए उतना कम है। ‘रात में जागता है, दिन में सोता है, सारा टाइम सपनों में खोता है। घर का ठिकाना नहीं, जंगल से प्यार है...नियम गए चूल्हे में, मानो उसकी सरकार है।’ एकदम कलियुगी यूथ के माफिक। जाने-अनजाने उल्लू हमारे यूथ का प्रतिनिधित्व कर रहा है। ऐसे सर्वगुण संपन्न पक्षी को बारम्बार नमस्कार।
उल्लू जी के पास इतने सारे गुण हैं फिर भी इन्हें अपना प्रचार-प्रचार पसंद नहीं। सन्यासी की भांति जंगल में शांति पूवर्क रहते हैं। दूसरी तरफ मोर है, हर तरफ घूमता रहता है। जरा सी बात हुई नहीं कि चीखना शुरू कर देता है। बारिश में ख्वामखाह नाचता है। उल्लू जी को पता है कि ये बारिश, ये मौसम, कभी खुशी-कभी गम...ये सब जीवन का चक्र है। इसके लिए नाचना क्या, चीखना क्या...। कितना ज्ञान है उल्लू को। जिस समय को दुनिया अंधकार, रात्रि, नकरात्मक या आराम करने काल समझती है, उल्लू उस काल को अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए इस्तेमाल करता है, यह प्रेरणादायक है। ग्रीक में बुद्धि की देवी, एथेन के बारे में कहा जाता है कि वे उल्लू का रूप धरकर पृथ्वी पर आई हैं। उल्लू धन की देवी लक्ष्मी का वाहन और इसलिए वह मूर्ख नहीं हो सकता है। धन कमाने में अच्छे-अच्छों के छक्के छूट जाते हैं, जिसके पास धन की देवी हों उसके पास कितनी कमाल की बुद्धि होगी। (प्वॉइंट टू बी नोटेड)...मैनेजमेंट गुरू।
अगर मैंने कभी कोई धार्मिक चैनल शुरू किया तो सबसे पहले उल्लू बाबा को प्रवचन देने के लिए आमंत्रित karoonga। माता-बहनें उल्लू बाबा से दीक्षा लेंगी। उल्लू जी की आरती होगी। उल्लू के नाम पर चैनल वाले उल्लू नहीं बनाएं, खास ख्याल रखा जाएगा। बड़े-बड़े चौराहों पर आपकी मूर्तियां लगवाई जाएंगी। इन चौराहों पर उल्लू-सत्संग की विशेष व्यवस्था होगी।

उल्लू जी से दरख्वास्त
हे उल्लू महाराज लक्ष्मी मां सहित आपके दर्शन को हम धरतीवासी अकुला रहे हैं। आपको प्रसन्न करने के लिए हमने कितने मुहावरे गढ़े हैं, कितनी कहावतें बनाई हैं, कितनी गालियों को रचा है....आप क्या जानें..? उल्लू का पट्ठा, अबे ओ उल्लू, उल्लू है क्या, उल्लू बनाया बड़ा मजा आया, उल्लू सीधा करना, उल्लू की दुम, बस एक ही उल्लू काफी था, हर शाख पे उल्लू बैठा है.. आदि तो उदाहरण मात्र हैं..।
आप तो यही समझते हैं ना कि हम सिर्फ दीवाली पर आपको याद करते हैं...। अरे बाबा हर क्षण आप हमारी यादों में समाए रहते हैं। हम आपको भूल न जाएं इसके लिए हमने कई लोगों को उल्लू नाम से संबोधित करना शुरू कर दिया है। नेता तो खासतौर से आपकी श्रेणी में आ गए हैं। गुस्ताखी माफ उल्लू जी...इसे आप अपनी इंसल्ट न समझिए पर क्या करें डंकी भी मना कर देते हैं कि नेताओं को गदहा मत कहा करो, इसलिए उन्हें उल्लू कहना पड़ता है। सॉरी! इसे हमारा छुटप्पन समझकर माफ दीजिए। ‘क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात।’ हे उल्लू! इस दीवाली पर सारे-गिले-शिकवे माफ करके हमें सलक्ष्मी अपने दर्शन दीजिए।

लक्ष्मी माता को लाने की ट्रिक्स
...पिछली बार दीवाली पर लक्ष्मी मैया को आप पड़ोसियों के घर ड्रॉप करके अकेले ही हमारे घर की कॉल बैल बजा रहे थे। दिज इज नॉट फेयर। आना हो तो लक्ष्मी जी को साथ लेकर ही आना। अगर वो कहीं और जाना चाहें तो जबरदस्ती अपना डायरेक्शन हमारे घर की तरफ कर लेना। लक्ष्मी मैया सवाल-जवाब करें तो कहना की हवा ने रुख बदल लिया है। वो कितने भी ब्रेक लगाएं, कह देना....मैया ब्रेक फेल हो गए हैं। जैसे ही हमारा घर आए...कह देना..मैया सीधी टांग पंक्चर हो गई है। लगता है रॉकेट मेरी टांग में आकर ही लगा है। आप मैया को हमारे घर बैठा देना और कहना, मैं पंक्चर जुड़वाने जा रहा हूं तब तक इसी घर में स्टे कीजिए। उल्लू जी हमने आपके लिए कितने सारे गिफ्ट आयटम्स तैयार करके रखे हैं। आपकी उल्लूआइन के लिए शॉल है। आपके लिए टेस्टी ड्रायफ्रूट्स हैं। एक बार सेवा का अवसर अवश्य प्रदान करें। विद लक्ष्मी आएं और अगले ही क्षण अकेले टरक जाएं।

Thursday, November 8, 2012

यादों की चाशनी में


सनी हुई है मेरी हर बात
तेरी यादों की चाशनी में
लिपटे हैं मेरे दिन-रात
तेरी यादों की चाशनी में
हर वक्त हर घड़ी अब
तेरी ही आरजू है
मैं बन गया मिठास
तेरी यादों की चाशनी में...
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कुछ तो कमी है लेकिन
जो स्वाद वो नहीं है
मीठा बहुत हूं लेकिन
बात वो नहीं है
कइयों दफा है चाखा
तब ये पता लगा है
तुझमें नमक है खास
तेरी यादों की चाशनी में
- राजीव शर्मा

Sunday, November 4, 2012

खील की खिल्ली



दीए सज गए, झालर सज गई
सज गए चकई, अनार
खील बेचारी सोच रही
मुझे नहीं किया तैयार
नहीं किया तैयार कि मैं हूं हल्की-फुल्की
जैसी बॉलीवुड की हीरोइन है ‘कल्कि’
कह ‘फन डे महाराज’ खील से कैसी रुसवाई
क्यों मॉडर्न दुनिया ने खील की खिल्ली उड़ाई


‘डोंट माइंड देवियों और सज्जनों लेकिन ‘खील मैया’ ने इस दीवाली पर रौद्र रूप धारण कर लिया है। धान में निकलते समय इतनी तेज आवाज कर रही है मानो किसी के स्कूटर का साइलेंसर फट गया हो। चीखते हुए कह रही हैं एक-एक को देख लूंगी। खासतौर से नए जमाने के छोरे-छोरियों को। काली-काली चॉकलेट के आगे मुझ गोरी-चिट्टी स्लिम-ट्रिम खील को भूल गए। ‘व्हाट ए कलियुग सर जी।’

तो चलिए साहब बैठे-बैठे क्या करें करना है कुछ काम, शुरू करें ‘खील-पुराण’ लेकर दीवाली का नाम। ...सालों पहले की बात है। बाजार में खील नामक एक नन्ही-मुन्नी-सी वस्तु रहा करती थी। दीवाली का त्योहार आते ही इसकी बांछें खिल जाया करती थीं और मन बल्लियों उछलने लगता था। इसका मन बल्लियों न उछले इसके लिए दुकानदार खील के ढेर के चारों ओर बल्लियां लगा दिया करते थे, लेकिन फिर भी हवा का झोंका आते ही मन बल्लियों को पार कर उछल जाया करता था। कितनी हैप्पी-हैप्पी हुआ करती थीं ये उन दिनों। इनकी डिमांड इस कदर थी मानो ये उन दिनों की कैटरीना कैफ हों। हर कोई इन्हें अपने थैले में भरने के लिए आतुर रहता था। अपनी डिमांड को देखते हुए ये अपने प्राइस डबल-ट्रिपल कर देती थीं पर फिर भी दीवाली पर मोस्ट सेलेबल ‘आयटम’ हुआ करती थीं। हर बाजार में, हर दुकान पर खील का बोलबाला हुआ करता था। तब दो ही चीज दीवाली पर लोग पसंद करते थे, दिन में खीर, रात में खील। पर मुआ नया जमाना जब से आया है, खील का दिल चीर कर रख दिया है। थैले की बात छोड़िए थैलियों में भी खील खरीदने में भी लोग संकोच करने लगे हैं। अब चूंकि दीवाली पर लक्ष्मी-गणेश का पूजन खील से ही किया जाता है, अत: औपचारिकतावश महज इतने पीस खरीदते हैं कि चार-पांच लक्ष्मी जी के मुंह से चिपक जाएं और चार-पांच गणेश जी के मुंह पर। हो गई जै राम जी की। इस जमाने के मॉडर्नियाने के चक्कर में पुराने लोगों को भी खील के स्वाद से महरूम रहना पड़ रहा है। 100-200 ग्राम खील लेकर आते हैं। पूजा के बाद अगर खील बच जाती हैं तो उन्हें भी भगवान जी के हवाले कर दिया जाता है और अगर फिर भी खील बच जाएं तो उनका हश्र ‘बेगानी शादी में अबदुल्ला दीवाना’ जैसा हो जाता है। श्रीमती जी उन्हें घर के किसी डिब्बे में जगह नहीं देती हैं, ऊपर से चार डायलॉग और सुना देती हैं। इतनी खील क्यों ले लाए....? कहा था कि बस पूजा के लिए लेकर आना। तुम्हें तो पैसे खर्च करने का शौक है। कहां रखूं इन्हें..। (चार डायलॉग खत्म)। स्थान के अभाव में खील इधर से उधर डोलती रहती हैं। अंतत: चुहिया के पेट में जाकर उसकी दीवाली मना देती हैं।

Thursday, November 1, 2012

बा मुलाहिजा होशियार... करवाचौथ आ रही है!




पत्नी द्वारा पतियों की जेब खाली कराने का व्रत (करवाचौथ) हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। पतियों को छलनी से देखते हुए इस दिन पत्नी मन ही मन कहती है, डार्लिंग...मैं तुम्हें जीवन पर्यंत छलती रही और आगे भी छलूंगी। ये छलनी इस बात की साक्षी है। इस दिन पत्नी के ब्यूटीपार्लर जाने पर पति कोई आॅब्जेक्शन नहीं उठाता, बल्कि उसके तैयार होने पर खुश होता है। पत्नी भी महंगे से महंगा फेशियल यह सोचकर कराती है कि दोबारा ऐसा मौका नहीं आएगा। रात में पत्नी का चेहरा देखकर पति सोचता है कि बीवी के चेहरे पर आने वाली चमक का राज उसका प्यार है, वह बावरा यह नहीं जानता कि यह तो फ्रूट फेशियल का कमाल है। 


वैसे देखा जाए तो यह त्योहार किसी भी विवाहित स्त्री के लिए साल का सबसे अच्छा दिन होता है। इस दिन उसे बिना किसी डिमांड के तरह-तरह के उपहार मिलते हैं। जो पति साड़ी दिलाने के नाम पर बीवी को हफ्तों तक नचाता रहता है, वह करवाचौथ पर बीवी के लिए खुद महंगी साड़ी लेकर आता है। (बात अलग है कि साड़ी देखती ही पत्नी की जुबां कहती है कि अरे इसकी क्या जरूरत थी...लेकिन मन कहता है कि साड़ी लानी थी तो मुझसे पूछ लेते...मुझे चौड़े बॉर्डर की प्लेन साड़ी चाहिए थी, जिस पर छोटे-छोटे बूटे हों, कलर लाइट पर्पल या लेमन हो...ब्लाउज फुल स्लीव्स चाहिए था...ये रेड कलर की साड़ी ले आए हो....इसे पहनकर मैं बिल्कुल कार्टून लगूंगी)।  इस विशेष दिन पत्नी रानी पर किचेन में काम करने के लिए दवाब नहीं डाला जाता। सारा दिन देवी जी टीवी पर मनपंसद धारावाहिक देखती रहती हैं। पति यह सोचकर रिमोट नहीं मांगते कि कहीं पत्नी का ध्यान न टूट जाए और जागृत अवस्था में उसके भूख-प्यास के सेंसर खाने-पीने की डिमांड न करने लगें अत: हसबैंड सुबह उठकर नाश्ता नहीं मांगते। दोपहर में लंच के लिए भी नहीं कहते। मजे की बात तो यह है कि पत्नी तो व्रत रखती ही है, खाना न मिलने के कारण पति का भी व्रत हो जाता है। यानि एक तीर से दो शिकार। जिन महिलाओं के पति अन्य दिनों में पत्नी सेवा नहीं करते, करवाचौथ पर उनसे विशेषतौर पर खुन्नस निकाली जाती है। प्यार-प्यार में पत्नी घर का सारा काम करवा लेती है, पति भी यह सोचकर काम करता रहता है कि पत्नी ने उसकी दीर्घायु के लिए सुबह से एक घूंट पानी नहीं पिया। ... बेचारे को यह नहीं पता कि बीवी यह सोचकर खुश है कि चलो व्रत के बहाने से ही सही....डायटिंग तो हो रही है। कई नादान तो ‘करवाचौथ ईव’ पर पत्नी के लिए विशेष पकवान लेकर आते हैं ताकि अगले दिन उनकी प्राणप्रिया को भूख-प्यास न लगे। (ऐसे पति पहले खुद ही पत्नी को सिर पर चढ़ाते हैं और बाद में रोते हैं कि पत्नी उन्हें घास नहीं डालती)। शायद वे ये नहीं जानते कि करवाचौथ पर ‘अर्ली इन द मॉर्निंग’ जब आप सो रहे होते हैं तब पत्नी बैड टी ले चुकी होती है, कई तो स्वल्पाहार कर चुकी होती हैं। इस दिन पति-पत्नी के बीच प्रेम की इतनी जबरदस्त बाढ़ आती है कि उसका प्रकोप साल भर पतियों को सहना पड़ता है। खैर....हमारा क्या जाता है.....जब मियां-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी। हमारा तो पत्नियों से सिर्फ इतना ही अनुरोध है कि आप अपने पतियों को ‘एक दिवसीय राजा’ मत बनाइए। उनसे करवाचौथ पर भी वैसा ही व्यवहार करें जैसा आम दिनों में किया जाता है। ताकि करवाचौथ की अगली सुबह जब उनकी आंख खुले तो उन्हें इस बात का भ्रम न रहे कल उन्होंने बहुत बढ़िया सपना देखा।