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Friday, February 7, 2014

अलबेला बसंत



कामदेव तुम्हें हर वक्त प्रेम सूझता है
घर के काम सभी पेंडिंग हो जाते हैं
भूख-प्यास तुम्हें नहीं सालती बसंत में
बच्चे रोज सुबह रोटी-रोटी चिल्लाते हैं
रति की बात सुन मुस्काए ऋतुराज
बोले सुन प्यारी, चल पिज्जा मंगाते हैं
मार गोली रोटी को टेंशन काहे लेती है
नौ से बारह कोई फिल्म देखकर आते हैं।
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बौर देख आम का बौराई हैं डालियां
लालियों के पीछे सारे लल्लू बौराए हैं
तीर कैसा छोड़ा है काम के देवता ने
मेंढकी की याद में दादुर टर्राए हैं
खांसी सुन बाबा की, अम्मा शरमा रही
घुटनों के जोड़  चर्राके मुस्काए हैं
प्रेम रंग चढ़ा ऐसा सांवरे कन्हैया पे
गोपियों के बीच राधा-राधा चिल्लाए हैं