आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी एक अखबार की
कलमों के सिपाही की और खबरों के संसार की,
पक्के बेशरम, हम पक्के बेशरम......
जो ज्यादा सौदा (खबरें) लाता है, कम वेतन वो पाता है,
जो चिकनी-चुपड़ी करता है, वही चीफ बन जाता है,
नेट से चोरी करने वाला अप-टू-डेट कहलाता है,
संपादक भी अपनी खबरें ठेके पर लिखवाता है,
प्रेस कान्फ्रेंस में मिलने वाले गिफ्टों की बहार की,
कलमों के सिपाही की और खबरों के संसार की,
कारीगर हैं हम, कारीगर हैं हम....
न्यूज फेक हो फरक नहीं पर पता नहीं ये लग पाए,
कांट-छांट लो, टीप-टाप लो, खबर एक्सक्लूसिव बन जाए,
खबरों से ज्यादा विजापन पत्रकार लेकर आए
डोंट वरी तब खबर फ्रंट की मिस होती हो...हो जाए,
चाय के प्यालों में डूबी बाईलाइन के बहार की,
कलमों के सिपाही की और खबरों के संसार की,
तनख्वाह अपनी कम, तनख्वाह अपनी कम...
चौथा स्तंभ रोता है, बोझा अपना ढोता है,
इस धंधे में आने वाला खुशियां अपनी खोता है
उल्लू बनकर जागे राते में, देर तलक फिर सोता है,
बीज दुखों के जीवन भर अपने हाथों बोता है,
दुखियारों की, खिसियायों की, मजबूरों की, लाचार की,
कलमों के सिपाही की और खबरों के संसार की,
बुरे फंस गए हम, बुरे फंस गए हम।।
Sunday, February 21, 2010
Tuesday, February 2, 2010
बहुत याद आती है
बहुत याद आती है चूल्हे की रोटी
नरम सी, गरम सी, थोड़ी सी मोटी,
रोटी से मक्खन की लौनी टपकना
गरमा-गरम दूध गुड़ से सटकना
चूल्हे की चाय में अदरख महकना
पतीले में आलू की सब्जी खदकना
बहुत याद आता है कच्चा अचार,
जिसमें छिपा था नानी का प्यार.......
कड़ी धूप में ट्यूबबैल पर नहाना,
खेतों से गन्ने चुराकर चबाना,
पुरखों की छतरी पे ऊधम मचाना
कभी दौड़ना, कभी बैठ जाना,
बहुत यादी आती है फटी सी बिछैया
जिसे ओढ़ती थी नौहरे की गइया.....
कमरक की चटनी और सूखी खटाई,
छुपा के रखी खोए वाली मिठाई
शाम को कुएं पर हंसना बतियाना
सज-धज सहेली के झुंडों का जाना
बहुत याद आती है गरमी की छुट्टी
मगर गांव से हमने कर ली है कुट्टी....
नरम सी, गरम सी, थोड़ी सी मोटी,
रोटी से मक्खन की लौनी टपकना
गरमा-गरम दूध गुड़ से सटकना
चूल्हे की चाय में अदरख महकना
पतीले में आलू की सब्जी खदकना
बहुत याद आता है कच्चा अचार,
जिसमें छिपा था नानी का प्यार.......
कड़ी धूप में ट्यूबबैल पर नहाना,
खेतों से गन्ने चुराकर चबाना,
पुरखों की छतरी पे ऊधम मचाना
कभी दौड़ना, कभी बैठ जाना,
बहुत यादी आती है फटी सी बिछैया
जिसे ओढ़ती थी नौहरे की गइया.....
कमरक की चटनी और सूखी खटाई,
छुपा के रखी खोए वाली मिठाई
शाम को कुएं पर हंसना बतियाना
सज-धज सहेली के झुंडों का जाना
बहुत याद आती है गरमी की छुट्टी
मगर गांव से हमने कर ली है कुट्टी....
Subscribe to:
Posts (Atom)