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Tuesday, February 5, 2013

मुहब्बत का तजुर्बा



खुद को बर्बाद करने का तजुर्बा हमसे कोई सीखे
जिंदगी खाक करने का तजुर्बा हमसे कोई सीखे
मुहब्बत की है मैंने जानता हर शख्स बस्ती का
मगर अंदाज क्या हो, ये तजुर्बा हमसे कोई सीखे
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नहीं आसान उसका रहनुमाई यूं ही कर देना
खुदा की सी खुदाई यूं ही कर देना
कि रोये कई दफा हैं वो सनम के दर पे जी भरके
मगर फरियाद क्या हो, ये तजुर्बा हमसे कोई सीखे
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सुना है तुमने भी, मैंने भी, उसने और इसने भी
मुहब्बत से बड़ा कोई सितम वो दे नहीं सकता
ये दरिया आग का है डूबकर तो सब ही जाते हैं
मगर जज्बात क्या हों, ये तजुर्बा हमसे कोई सीखे

- राजीव शर्मा ‘राज’