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Monday, October 6, 2008

खबरों की मंडी


अगर खबरों के लिए ऐसे ही स्टिंग ऑपरेशन होते रहे और मारामारी मचती रही तो आने वाले सालों में क्या हाल होगा, यही बयां कर रही है ये कविता
(१)
ख़बरों का धंधा ऐसे बढता रहा तो
जल्द ही समाचार मंडी खुल जायेगी,
ठेला-ठेला लेकर ख़बर बैठे होंगे पत्रकार
खबरें खरीदने जनता थैला लाएगी,
बोली लगेगी एक्सक्लूसिव न्यूज़ की
क्राइम की ख़बर हाथों-हाथ बिक जायेगी,
सिंगल-डबल कॉलम कौन पूछता है यारों
सब्जी में धनिये सी पीछे-पीछे जाएगी।
(२)
कोई कहेगा हर न्यूज़ दो रुपए है,
कोई टॉप lead संग बॉटम मुफ्त बांटेगा
देके हवाला ताजी- ताजी लिखी न्यूज़ का
ग्राहक का दिमाग कोई घंटों तक चाटेगा
भागी लुगाई फिर पाँच बच्चे छोडके
टांगने के लिए ऐसी न्यूज़ कोई छाटेगा
बेच न पाया गर कोई ख़बर पत्रकार,
सम्पादक अगले दिन से आधी तनख्वाह कटेगा।

रायल राईट ....यहाँ क्लिक कीजिये


कुछ उंट उंचा। कुछ पूंछ उंची। कुछ उंची पूंछ उंट की। उंचे उंट की पीठ उंची। कुछ आया समझ में। ....नहीं, तो फिर हेडिंग पर क्लिक कीजिये।



Thursday, October 2, 2008

अरे मूर्ख बताशा मत फोड़


अरे मार डाला, अब बस भी करो. कितना नहालाओगे. अभी तो वाइरल ढंग से ठीक भी नही हुआ....डाक्टरों ने भीगने के लिए मन किया है. कम्बखतों.. मलेरिया हो जायेगा....बेचारे भोलेनाथ भक्तों के आगे 'कम नहलाओ, पानी बचाओ' का नारा लगा रहे थे तब तक एक भक्त ने थोक में रोली उठाई और भगवान् की आँख में दे मारी. भगवान् बिलबिला उठे...अरे मार डाला बचइयो रे...कोई है जो मेरी मदद करे...बड़ी देर से भगवान् की कराह सुन रहे कोने में खड़े भगवान् राम से उनका दुःख देखा न गया. वे अपने स्थान पर ही जमे जमाये बोले क्या हुआ प्रभु, सुबह-सुबह आपने 'हल्ला मचाओ अभियान' क्यों चला रखा है? कहीं फिर से भूत-प्रेतों ने भूतलोक की मांग को लेकर आन्दोलन तो नही कर दिया?
...या फिर गोरा मैया 'कैलाश महिला संगठन' बनाने की जिद पर अडी हैं? अरे नही रे प्रिय राम...अगर ऐसा होता तो कोई न कोई समाधान जरूर निकालता. पर इन भक्तों का क्या करू? हर रोज ये मेरा कचूमर निकाल देते हैं. पिछले महीने सावन में इन्होने मेरी वो गत की थी कि शरीर अभी तक दुःख रहा है. नहला-नहला कर जुकाम कर डाला. बेचारी पार्वती भी मायके जाना कैंसिल कर मेरे विक्स लगाती रहीं. बड़ा परेशान हूँ भ्राता, कोई आँख में पानी daal जाता है तो कोई नाक में.कल तो हद हो गई, एक भक्त जाने कहाँ से ढूँढ ढांड कर प्योर ढूढ़ ले आया, उसने मेरी दोनों आंखों में ऐसा दूध घुसाया की घंटे भर तक आँख नहीं खुली.(शुक्र है की मेरी तीसरी आँख है)
मैं हर रोज भक्तों को समझाता हूँ कि मैं भाव का भीख हूँ, रोली चावल का नही, पर भक्त हैं कि मानते ही नही....भगवान शिव का क्रंदन सुनकर दुर्गा माँ दौडी चली आयीं. कहने लगी..आप ठीक कह रहे हैं प्रभु. घायल कि गति घायल जाने. नवरात्रि में भक्तिने मेरी जो गत बनाती हैं, वो में ही जानती हूँ. पिछली बार एक भक्तिन ने मेरे मुह पर इतनी जोर से बताशा फोड़ा था कि होठ सूज गया. में कहती रह गई, अरे मूर्ख बताशा मत फोड़, पर हमारी सुनने वाला कौन है आँख-कान के अंदर रोली घुसाना तो दूर कि बात, कोई-कोई तो ऐसे जोर से नारियल मारती है कि ठीक मेरी खोपडी पर ही लगता है. बाय गोद दुखी हूँ. भक्तों ने हमें गुड्डा गुडिया समझ लिया है.कभी हमारी मूर्तियों को जबरदस्ती दूध पिलाने लगते हैं तो कभी कहते हैं कि भगवान् रो रहे हैं. वार्तालाप का यह दौर चल ही रहा था कि तभी एक धतूरा शिवजी कि आँख से जा टकराया. इससे पहले कुछ और आता दिखाई देता, आँख-नाक बंद कर प्रभु बैठ गए ध्यान में.

Wednesday, September 24, 2008

ख़त्म होता मुगलिया शहर ... पूरी ख़बर के लिए यहाँ क्लिक करें



ताज नगरी में आकर टूरिस्ट आख़िर क्या देखना चाहता है। विदेशी डांस। विदेशी सड़कें। विदेशी बिल्डिंग। अगर यही सब देखना है तो वह आगरा क्यों आएगा। ज़रा सोचिये....

रिक्शे पर रोशन ... पूरी ख़बर के लिए यहाँ क्लिक करें

Saturday, September 20, 2008

दिल्ली-६ इन आगरा ....पुरी ख़बर के लिए यहाँ क्लिक करें


ताज हैरान था, शायद उस पर भरी पड़ रहा था अभिषेक का जादू। ताज शांत था, शायद जल रहा था सोनम की सुन्दरता से। ताज उदास था, शायद सामना नहीं कर पा रहा था वहीदा की सादगी का। ताज नाराज था, शायद झेल नहीं पा रहा था ऋषि का अल्हड़पन।

Monday, September 15, 2008

गंदा है पर.... अधिक जानकारी के यहाँ क्लिक करें


नारी निकेतन का कड़वा सच। जहाँ लड़कियों को सुधारने कि बजाय फ़िर से उसे कोठे की शोभा बनाया जा रहा है। कोठे से कोठे तक पहुचने के खेल का खुलासा।
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Sunday, September 7, 2008

क्रोसिंग कनेक्शन ...यहाँ क्लिक करें

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहाँ हमारा... जी हाँ, यही हकीकत है शहर के एक चौराहे कि, जिसने छः दशकों से ज्यादा का सफर तय किया है।

Monday, September 1, 2008

शानदार शुरुआत

ताज... हमारा ताज। निराला ताज। शाहजहाँ का सपना. मुमताज का अरमान। दुनिया के सबसे बड़े ताज महल के माडल से पर्दा उठ चुका है। वैसी ही नक्काशी, वैसी ही पच्चीकारी का नायब नमूना। ताज के शहर के एक और ताज तराशा जा चुका है। उसी शिद्दत और उसी लगन के साथ। उसी शो के कुछ बेशकीमती फोटो। आगरा के टूरिस्म में नई शुरुआत, अदाकारी और शिल्पकारी का संगम। आगरा में कलाकृति एम्पोरियम में ताज के दस मूड का नजारा। सूरज की लालिमा में लिपटा ताज।


















Wednesday, August 27, 2008

इन्तजार ख़त्म ..... यहाँ क्लिक करें



अदभुत अकल्पनीय और आधुनिक। एक ही छत के नीचे तीनों का मिलन। ख़त्म हो चुकी है इन्तजार की घडियां। जवां हो चुका है नया ताज। अंगडाई ले रही है अदाकारी। लालायित हो रही हैं लेजर लाइट क्योकि उठनेजा रहा है ताज की प्रेम कहानी से परदा। ......ख़बर के लिए हेडिंग पर क्लिक करें।

Friday, August 22, 2008

ताज महल के एक्सक्लूसिव फोटो


ये ताज महल के तहखाने का फोटो है। जो यमुना की तलहटी के किनारे है। दरअसल यहाँ ताज की नींव है। सुन्दरता के अपार सागर को समेटे खुबसूरत ताज इन्ही पर टिका है। इन फोटो को देखकर विश्वास नही होता की ये उसी ताज की जड़ है जिसे सुन्दरता की पराकास्ठा कहा जाता है। ताज के तहखाने में छुपी ताज की जर्जर हालत। देख लीजिये इन्ही पर टिका है आपका ताज।










विजई हुए विजेंद्र, जीत गए जीतेन्द्र

बीजिंग में भारत ने इतिहास रचा है। एक गोल्ड के साथ दो कांस्य। बहुत साल लगे यहाँ तक पहुचने में। अभिनव बिंद्रा, सुशील कुमार और विजेंद्र। इन तीनों ने भारत के सीने को चौडा कर दिया है। लेकिन इनके बीच जीतेन्द्र के हौसले को जितना सराहा जाए उतना ही कम है। भले ही उसने कोई मैडल नहीं जीता लेकिन वह असली हीरो है। ठोडी में दस टाँके होने के बावजूद वह रिंग में उतरा था। उसकी इस हिम्मत की जितनी तारीफ़ की जाए उतनी ही कम है। यह जज्बा किसी भारतीय में ही हो सकता था। और उस भारतीय में जो साधारण परिवार से निकल कर आया हो। जो बड़ी शिद्दत और साहस से भारत से बीजिग तक पहुँचा।

Friday, August 8, 2008

Thursday, August 7, 2008

पप्पू कांट डांस साला



बबलू रो रहा है। पिंटू रो रहा है। बंटू रो रहा है है । चिंटू रो रहा है। सब के सब एक ही बात पर रो रहे है....हम पप्पू क्यों नही हुए. मम्मी आपने हमारा नाम पप्पू क्यों नही रखा. मम्मी अपने चिंटू-पिंटू को समझा रही है , बेटा तू जब पैदा हुआ तब चिंटू-पिंटू नाम का सीज़न था. जब तेरी ताई के बच्चे पैदा हुए तब चुन्नू-मुन्नू नाम का सीज़न चल रहा था. जब तेरी चची के बच्चे पैदा हुए तब सोनू-मोनू नाम का सीज़न प्रकट हो गया और जब तेरे पापा पैदा हुपे तब लल्लू-बिलल्लू नाम का सीज़न जोरों पर था.बेटा हर चीज़ का एक सीज़न आता है. कभी नोट का सीज़न तो कभी वोट का सीज़न, कभी नाम का सीज़न तो कभी दाम का सीज़न. कभी भोलेबाबा का सीज़न तो कभी साईराम का सीज़न. कभी साँप का सीज़न तो कभी 'सीडी' का सीज़न. ऐसे ही इस बार पप्पू का सीज़न आया है. पर मैं पप्पू वाले सीज़न में पैदा क्यों नही हुआ..? बेटे ने ठुनकते हुए पूछा.., और आपको पता है अब तो पप्पू भी इंटेलिजेंट हो गया है...हर साल पास होने लगा है. उसके पास होने पर चॉकलेट बांटी जाती है..मेरे पास होने पर तो आप और पापा रेस्टोरेंट चले जाते हो जहाँ आप दोनों खाते रहते हो और मैं देखता रहता हूँ.पर बेटे पप्पू-पप्पू होता है और तुम..तुम...मैंने बेटे की जिज्ञासा शांत करते हुए कहा.देखो, भले ही पप्पू पास होने लगा है, पप्पू के पास भले ही नोटों की गद्दी है...पर पप्पू कांट डांस साला...मेरे इतना कहते ही चिंटू खामोश हो गया. उसे समझ आ गया था की सरकार की तरह सीज़न भी रंग बदलते रहते हैं. जहाँ सरकार है, वहां तकरार है. जहाँ तकरार है वहां gaddiyon की बौछार है, जहाँ गद्दियों की बौछार है, वहां करार है...जहाँ करार है अंत में वहीँ सरकार है. बात घूम फ़िर कर वहीँ आनी है. फ़िर चाहे चुन्नू-मुन्नू हो या चिंटू-पिंटू. नाम में क्या रखा है साहब, सब सीज़न का खेल है.सीज़न है तो पप्पू भी पास है वरना पप्पू फ़ैल है

आठ के ठाठ हैं बन्धु

08-08-0 8
आठ के ठाठ हैं बन्धु
बाकी सब बकवास
जब तक आठ के घूँट न उतरे
बुझे न तब तक प्यास
क्यों डरता है 08 से प्यारे
'आठ' है जब तक साथ
भूल जायेगा खौफ 08 का
खूब जमेगी रात

Thursday, July 31, 2008

ताज में सतरंगी चादर

ये आस्था का सैलाब था या बेपनाह मोहब्बत को सलामी। जो शाहजंहा की शिद्दत में हजारों लोग सिर झुकाने पहुचे। मौका था बादशाह शाहजंहा के ३५३ उर्स का। इस दौरान ८०० फीट लम्बी चादर चढाई गई।

क्षितिज

श्वेत पंखुडियों सा बिखरा जीवन
आओ भर दो रंग इसे तुम पुष्प बना दो॥
शब्द-शब्द है टूटा, जीवन छंद अधूरा
बनूँ प्रणय का राग मुझे तुम अधर सजा लो....
तुम बिन मिटटी की काया का अस्तित्व कहाँ
काया के बनके प्राण परिचय बोध करा दो॥
भिक्षुक हूँ लेकिन भीख प्रेम की मत देना
सर्वस्व मिटा दो मुझको ख़ुद में समां लो...
जीवन की हर स्वांस समर्पित तुमको ही
दासी समझो या मस्तक का अभिमान बना लो ...
युगों-युगों का इंतजार स्वीकार मुझे,
धरती कहती है गगन से केवल क्षितिज दिखा दो....

Wednesday, July 30, 2008

ओस की एक बूँद


मैं ओस की ऐसी बूँद हूँ जो सूरज को देख नही पाती,
नदिया की धारा स्वप्न मेरा, पत्ते पर ही मैं मिट जाती।
एक रात का है मेरा जीवन, तिनका-तिनका रिसती हूँ मैं
मुझे साथ निशा के जाना है ये सोच सुबह मैं बह जाती॥
मेरे छीन ले गया स्वप्न कोई, मेरी रातें तन्हा रोई हैं,
बिरहन के गाल के आँसू सी चुप भी रहती, कहती जाती॥
मुझे आशाओं से प्यार नहीं, मुझे उम्मीदें मत दिखलाओ,
पल भर में ही बुझ जातीहै दीपक से अलग हुई बाती...
मेरा प्यार गया संसार गया , मेरे स्वप्नों का बाज़ार गया,
मेरा रूप गया श्रृंगार गया, मेरे जीवन का हर सार गया,
मैंने लाख यतन कर देखे हैं पर प्रीत की रीत नही भाती,
जितना तुम ह्रदय लगाओगे धोखा देगा साथी...
किसी सीप का मोती बन जायें, दुनिया से ओझल जाए
जो प्यार किसी का हो न सके वो प्रेम दीवाने हो जायें
मिलन ही होता प्रेम अगर क्यों चकोर दीवानी कहलाती
पा लेती अपने गिरधर को मीरा कैसे पूजी जाती.............

Tuesday, July 29, 2008

तब धूप खिलेगी आँगन में



तब धूप खिलेगी आँगन में

जब चिड़िया के छोटे बच्चे चोंच से दाना खायेंगे
जब गाँव की छोटी नहर में बच्चे नंगे बदन नहाएँगे
हर रात आग को घेर लोग जब आल्हा-ऊदल गायेंगे
तब धूप खिलेगी आँगन में...
जब बसंत में खेतों में पीली सरसों फूलेगी
जब सावन में सखियाँ मिलकर पेड़ों पर झूला झूलेंगी
जब बारिश के पानी से मिट्टी में खुशबु आएगी
तब धूप खिलेगी आँगन में....
सूरज अब भी निकला करता है पर धूप अभी मुरझाई है
जब से दूरी बड़ी दिलों में, धूप लगे अलसाई है,
पर एक दिन ऐसा आएगा जब फर्क न होगा इंसा में मानवता होगी एक जात,
हर दिन तब रंग उडेगा और दीप जलेंगे सारी रात,
खुशियाँ झोली में आएँगी और प्यार की जब होगी बरसात
तब धूप खिलेगी आँगन में, तब धूप खिलेगी आँगन में.....

Sunday, July 27, 2008

नहीं पिया मुझको हक़ कोई

नहीं पिया मुझको हक़ कोई

क्यों सोलह श्रंगार करू मैं
क्यों गजरा महकाऊँ
द्वार पे आहट सुनते ही क्योँ दौडी-दौडी आऊँ
तुझे न पाऊँ तो घबराऊँ
देख तुझे खिल जाऊं
भीतर झट से भाग आईना देख मैं शर्मा जाऊं,
पर, एक नज़र न देखा तुमने देर तलक मैं रोई
नहीं पिया मुझको हक़ कोई ......
कानों की बाली पूछ रही, गालों की लाली पूछ रही
पूछ rahi माथे की बिंदिया, बैनी काली पूछ रही,
चहक-चहक बतियाने वाली, क्योँ रहती खोयी-खोयी
नहीं पिया मुझको हक़ कोंई
आसान कितना होता है ख्वाबों में संसार बसाना
अपनी चूड़ी की खनखन में उसकी धड़कन का घुल मिल जाना
एक नज़र की खातिर जीना एक नज़र मर जाना
एक नज़र की चाहत में मैं सुबह तलक न सोयी
नहीं पिया मुझको हक़ कोंई............

Monday, July 21, 2008

जै जै कुर्सी मैया

मनमोहन कुर्सी बचाइए, बिन कुर्सी सब सून,
कुर्सी के बिन नहीं मिले, सोनिया को सुकून।

सांसद- वान्साद जोड़ के, कुर्सी लई बनाय,
चढ़ मनमोहन कह रहे, सरकार लियो बचाय

पाहन पूजे हरी मिले, तो मैं पूजूं पहार
ताते यह कुर्सी भली, बनवादे सरकार

बम भोले का शोर है, एटम बम का जोर
भक्ति-शक्ति साथ ले रहीं मनवा में हिलोर

सत्ता सुख

करार पर रार का रिजल्ट सामने है। सत्ता सुख के लिए पराये अपने हो गये हैं। और अपने पराये। सभी देशहित में फैसले ले रहे हैं। लेकिन इस देशहित का क्या मतलब है, किसी को पता।

Wednesday, July 16, 2008

जिल्लत की जिन्दगी

कहते है बाप के लिए सबसे बड़ा बोझ बेटे की अर्थी को कन्धा देना होता है। लेकिन क्या किसी ने आरुशी के पिता से पूछने की कोशिश की उनका दर्द क्या है। बिना बेटे की अर्थी को कन्धा दिए उसने दुनिया का सबसे बड़ा बोझ उठाया। वह है जिल्लत का। मीडिया के दवाब में पुलिस ने उसे अपने ही जिगर के टुकडे का हत्यारा बना दिया। ये मीडिया ही था जिसने पहले दिन टॉप लीड दी थी कि पापा ने ही मारा आरुशी को। बाद में इसी मीडिया ने दिया कि पापा ने नही मारा आरुशी को। मीडिया ने अपना कम किया और पुलिस ने अपना। बीच में पिसा तो सिर्फ़ अभागा बाप।

Saturday, July 12, 2008



ये २१वीं सदी की सच्चाई। जहाँ आज भी बच्चे मौत के साये में क ख ग सीख रहे हैं। सत्तासीनों को शायद इसकी कोई परवाह नहीं। ये इंडिया की नहीं बल्कि भारत की सच्चाई है। फाइव स्टार में बैठ कर बनाई गई नीतियों की हकीकत है।

Thursday, July 10, 2008

आगरा में शोपिंग ना बाबा ना


ये हिंदुस्तान है मेरी जान। यहा ताज की कशिश है तो तपता रेगिस्तान। यंहा समुद्र की मौज है तो वादियों की बहार भी।

Tuesday, July 8, 2008

कब आएगी वो दुनिया जो हमको रूह देगी

अंधेरे जीवन में कैसे रोशनी होगी

हम रोज दुखों से हौसला उधार मागंते है

हम कांच के खिलौने हैं प्यार मागंते हैं

Saturday, July 5, 2008