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Friday, August 23, 2013

जो भी निकली, बहुत निकली



जुबां से मैं न कह पाया, वो आंखें पढ़ नहीं पाया
इशारों की भी अपनी इक अलग बेचारगी निकली।।

मेरे बाजू में दम औ' हुनर की दुनिया कायल थी
हुनर से कई गुना होशियार पर आवारगी निकली।।

तसव्वुर में समंदर की रवां मौजों को पी जाती
मैं समझा हौंसला अपना मगर वो तिश्नगी निकली।।

जरा सी बात पे दरिया बहा देता था आंखों से
मेरी मय्यत पे ना रोया ये कैसी बेबसी निकली।।

जिसे सिखला रहा था प्यार के मैं अलिफ, बे, पे, ते
मगर जाना तो वो इमरोज की अमृता निकली।।

दवा तो बेअसर थी और हाकिम भी परेशां थे
मुझे फिर भी बचा लाई मेरी मां की दुआ निकली।।

Thursday, August 22, 2013

कुछ यूं ही




शजर की टूटी शाखों पर 
फूलों की बातें, रहने दो 
बदरा रूठ गया धरती से
अब बरसातें, रहने दो

अंगना सौतन का महका दो
मेरे गजरे से भले पिया 
पर, कान की बाली पे अटकी
अपनी वो यादें रहने दो
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रहने दो थोड़ा बांकापन
चाल समय की टेढ़ी है
ले जाओ सारा सीधापन
छल-मक्कारी रहने दो

बक्से में रहने दो नकाब
चेहरे पर गर्दिश काफी है
दो लफ्ज से छलनी दिल होगा
लोहे की आरी रहने दो

दुश्मन पर प्यार लगा आने
खंजर की पढ़कर आत्मकथा
दुआ-सलाम कबूल मुझे
पर, पक्की यारी रहने दो। 


Tuesday, August 20, 2013

हाथापाई करते हैं



गोल-मोल सी इस दुनिया में, 
चल अबकी लड़ाई करते हैं 
बहुत हो चुका प्यार-मुहब्बत
हाथापाई करते हैं....
कड़वी बातें सारी मन की
बोल सके तो बोल मुझे 
दबी आग मैं भी उगलूं
कटु शब्दों में तोल मुझे
कुछ ऐसा करके भी देखें
जैसा बलवाई करते हैं 
बहुत हो चुका प्यार-मुहब्बत 
हाथापाई करते हैं....
बगल छुरी, पीछे से खंजर
प्यार नहीं आसान यहां 
सिसकी तेरी सुन कर आती
चेहरे पर मुस्कान यहां
जो ना दे, तो हक छीन के ले
चल ऐसे कमाई करते हैं,
बहुत हो चुका प्यार-मुहब्बत
हाथापाई करते हैं....