वो कहते हैं
सिर चढ़ जाती है मुहब्बत
करने से इजहार बार-बार
कोई उनसे पूछे जरा
क्यों गूंजती है मस्जिद में
पांच वक्त की अजान, और
मंदिरों में घंटे-घड़ियाल...
क्यों उसके सजदे में
हर बार ही झुकता है सिर
क्यों बिना वजह ही सारा दिन
बच्चा मां का पल्लू पकड़े
पीछे-पीछे घूमता है,
क्यों सूरज रोज सवेरे
लाल चूनर ओढ़ाता है धरती को
क्यों हवा के झोंके मदमस्त
किए जाते हैं तरु-पल्लव को
क्यों हर बार मेघ ही शांत करते हैं
धरती की प्यास को
क्यों चकोर सारी रात
तकता रहता है चांद को,
अब बता,
किसे है मुहब्बत का गुमान
तुझे या मुझे....?
6 comments:
बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति...
बेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (10-07-2013) के .. !! निकलना होगा विजेता बनकर ......रिश्तो के मकडजाल से ....!१३०२ ,बुधवारीय चर्चा मंच अंक-१३०२ पर भी होगी!
सादर...!
शशि पुरवार
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
पहली बार ब्लाग पर आया
कैलाश जी, शशि जी...धन्यवाद। संजय जी आप ब्लॉग पर पधारे, अच्छा लगा। आगे भी इसी तरह आते रहें और हमें कृतार्थ करते रहें।
मोहब्बत का गुमान तो सबको होता है लेकिन कुछ समय के लिए..
एक समय बाद उड़न छू हो जाता है यह गुमान, लेिकन कुछ समय के िलएयय
मोहब्बत का गुमान तो सबको होता है लेकिन कुछ समय के लिए..
एक समय बाद उड़न छू हो जाता है यह गुमान, लेिकन कुछ समय के िलएयय
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