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Tuesday, June 25, 2013

कुछ इस तरह भी....




आंखें कह रही आंसू से गिरने की मनाही है
अभी मंजर कहां देखा ये एक टुकड़ा तबाही है
संभालों पंख परवाजों, उड़ाने रद्द सब कर दो
नभ में कर रहा कोई अब दौरा हवाई है
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उसको क्या पड़ी है जो मेरे आंसू पिरोएगा
जिंदा लाश पर क्योंकर कोई आंखें भिगोएगा
तड़पती आह से राहत जिसे थी मिल रही यारों
नमक छिड़के बिना जख्मों पे, अब कैसे वो सोएगा
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ये तेरा है, वो मेरा है, चलो किस्सा खत्म कर दें
तेरी पहचान हो मुझसे, मुझे तुझमें हवन कर दें
दूरी रास्तों की है, तभी मंजिल पे पहुंचेगी
दिलों की दूरियां पहले दिल में ही दफन कर दें।।

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

ला-जवाब" जबर्दस्त!!

पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.