बदली हैं कितनी ख्वाहिशें इंसान के लिए
आंखें तरस रही हैं शमशान के लिए
इंसान तो इंसान है, क्या दोष उसे दें
मुश्किल हुए हालात अब भगवान के लिए
कुत्ते को पालते हैं वो औलाद की तरह
दरवाजे बंद हो गए मेहमान के लिए
पैसे को झाड़ जेब से नौकर लगा लिए
दो पल न फिर भी मिल सके आराम के लिए
जागीर दिल की नाम जिसके कर रहा था मैं
वो लड़ रहा मिट्टी के इक मकान के लिए
जिनके लिए तरसी तमाम उम्र ये आंखें
आए थे वो मिलने मगर एक शाम के लिए
इल्जाम सारे उसके मैंने अपने सिर लिए
मैं हो गया बदनाम नेक काम के लिए ....
7 comments:
dhanyawaad pooran ji...
bahut khoob
dhanyawaad suman ji...
अति सुंदर !!खूब लिखो !!
अति सुंदर !! लिखते रहो !!!
अति सुंदर !!खूब लिखो !!
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