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Tuesday, February 2, 2010

बहुत याद आती है

बहुत याद आती है चूल्हे की रोटी
नरम सी, गरम सी, थोड़ी सी मोटी,
रोटी से मक्खन की लौनी टपकना
गरमा-गरम दूध गुड़ से सटकना
चूल्हे की चाय में अदरख महकना
पतीले में आलू की सब्जी खदकना
बहुत याद आता है कच्चा अचार,
जिसमें छिपा था नानी का प्यार.......

कड़ी धूप में ट्यूबबैल पर नहाना,
खेतों से गन्ने चुराकर चबाना,
पुरखों की छतरी पे ऊधम मचाना
कभी दौड़ना, कभी बैठ जाना,
बहुत यादी आती है फटी सी बिछैया
जिसे ओढ़ती थी नौहरे की गइया.....

कमरक की चटनी और सूखी खटाई,
छुपा के रखी खोए वाली मिठाई
शाम को कुएं पर हंसना बतियाना
सज-धज सहेली के झुंडों का जाना
बहुत याद आती है गरमी की छुट्टी
 मगर गांव से हमने कर ली है कुट्टी....

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना है। गाँव की याद दिलाती हुई।आभार।