जब भी जीवन के झंझावत में, तुम ख़ुद को खोया पाना
तुम नारी हो, तुम शक्ति हो, ये कभी भूल न जाना।
जब भी आखों के पोरों से, दो बूँद नीर की ढुलकें
तुम नीर भरी दुःख की बदली, ये सोच नीर पी जाना,
जब लगे बीच मझधार में लहरों संग बही मैं जाती हूँ,
साँसों की जब तक आस रहे, तब तक लहरों से टकराना ।।
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