कभी मां बन जाते हैं
कभी बन जाते हैं दादी
कुछ ऐसे हैं
नए जमाने के डैडी!
नहीं दिखाते आंख
बात-बात पर
परीक्षा में नहीं जगाते
रात-रात भर
दोस्त की तरह दे रहे साथ
नए जमाने के डैडी!
दुनिया के दांव-पेंच
खुद ही सिखा रहे हैं
उलझन से कैसे सुलझे
ये भी बता रहे हैं
बेटे का बायां हाथ
नए जमाने के डैडी!
सूसू करा रहे हैं
पॉटी धुला रहे हैं
बच्चा जरा भी रोया
जगकर सुला रहे हैं
दे रहे मां को मात
नए जमाने के डैडी!
आदर्श का लबादा
अब तो उतार फेंको
बच्चे बड़े हुए हैं
चश्मा हटा के देखो
समझा रहे ‘पिता’ को
नए जमाने के डैडी!
7 comments:
धन्यवाद रजनीश भाई.....
सुन्दर और बेहतरीन रचना..
:-)
हाँ, अब डैडी लोगों की प्रवृत्ति बदल गई है!
अरुण जी, रीना जी, प्रतिभा जी, मेरा उत्साह वर्धन करने के लिए ह्रदय से आभार...
ब्लॉग बुलेटिन की फदर्स डे स्पेशल बुलेटिन कहीं पापा को कहना न पड़े,"मैं हार गया" - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
पितृ दिवस को समर्पित बेहतरीन व सुन्दर
रचना
शुभ कामनायें...
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