‘‘ गली हंसी रही है, मोहल्ला हंस रहा है। खामोशी हंस रही है, ‘हल्ला-गुल्ला’ हंस रहा है, देखो जी, गोदी का लल्ला हंस रहा है। लस्सी हंस रही है, रसगुल्ला हंस रहा है, तवे पर लोट-पोट भल्ला हंस रहा है। दुकान हंस रही है, मकान हंस रहा है, नोट देख बनिए का गल्ला हंस रहा है। हाथों की चूड़ियां बिना वजह खिलखिला रही हैं, अंगुली में पहना हुआ छल्ला हंस रहा है, और तो और, सचिन का बल्ला हंस रहा है।’’
1 comment:
thankyou manav ji...
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