आदरणीय
चिठ्ठाधारकों
दिल में व्यथा तो पिछले चार साल से छुपाए था पर अब कलेजा मुंह को आ रहा है सो ब्लॉग पर आपबीती लिखनी पढ़ रही है। बात सोलह आने सही है। समीरलाल जी के ब्लॉग ‘उड़न तश्तरी’ की कसम खाकर कह रहा हूं जो भी कहंूगा सच के सिवाय कुछ न कहूंगा।
बात सन 2008 की है। मैंने नया-नया ब्लॉग बनाया था। तब ब्लॉगिंग नया-नया शगल थी। चूंकि उन दिनों ब्लॉगिंग के बारे में मुझे कुछ ज्यादा जानकारी नहीं थी इसलिए जो भी मन में आता था, लिख देता था। मेरा सहयोग करती थी मेरी पत्नी। उसे कविताओं का शौक चर्राया था। कविता झेल पाना हर किसी के वश की बात नहीं होती इसलिए वह कविताओं पर किसी को सुनाने के बजाय ब्लॉग पर डालती थी। चूंकि तब चिट्ठाधारकों की संख्या ज्यादा नहीं थी (ऐसा मुझे लगता है, जरूरी नहीं आपका भी ख्याल ऐसा हो), सो ‘एनीहाउ’ मेरा ब्लॉग हिंदी के महान चिट्ठाधारकों की पहुंच के भीतर आ गया था। ब्लॉग जगत के बड़े-बड़े महात्मा मुझ बच्चे पर अपनी कृपा करते थे और उल्टी-सीधी पोस्ट पर भी मेरे उत्साहवर्धन हेतु बढ़िया कमेंट दे देते थे। क्या दिन थे वो भी....। मैं और मेरा ब्लॉग...साथ में ढेर सारे टिप्पणीदाता। मैं बल्लियों उछलता रहता था पर जनाब कभी टिप्पणियों की कद्र न जानी। समीर लाल जी, नीरज गोस्वामी जी , शोभा जी, रंजू भाटिया जी, बालकिशन जी जैसे ब्लॉगर्स अपने कमेंट के माध्यम से मेरे ब्लॉग की शोभा बढ़ाया करते थे, (यकीन न हो तो मेरी 2008 की पोस्ट पर जाकर देख लीजिए) पर वो कहते हैं ना कि ..सब दिन होत न एक समान.....मैं ब्लॉगिंग से दूर होता चला गया, मेरी पत्नी भी। ठीक उसी क्रम में टिप्पणी दाता भी दूर होते गए। न जाने कैसे ब्लॉग में भी गड़बड़ी आ गई और कमेंट वाला आॅप्शन गायब हो गया। फिर एक दिन....सोचा कि क्यों न ब्लॉग अपडेट किया जाए....पोस्ट लिखना फिर से शुरू किया लेकिन टिप्पणियां शुरू न हुईं। कुछ दिन के इंतजार के बाद एकाध टिप्पणी के दर्शन होते तो मन फूला नहीं समाता था। फिर हमारी रचनाएं ‘नई पुरानी हलचल’ और ‘चर्चा मंच’ पर भी चमकी। मैं जितना खुश था उससे कहीं ज्यादा खुश मेरी बीवी। पहली बार नई पुरानी हलचल में अपनी रचना देख उस बावरी ने तो खुशी में मुझे कई फोन कर डाले........अरे ब्लॉग देखा क्या...अब ब्लॉग अपडेट करते रहना.....। कुछ समय बाद पता चला ब्लॉग जगत की नींव ही कमेंट्स हैं। अगर कमेंट्स न होते तो ब्लॉग जगत का क्या हाल होता....। कहने वाले कहते हैं कि पोस्ट लेखक के मन का आईना होती है, मैं कहता हूं कि कमेंट रीडर के मन का आईना होते हैं। अगर मुझे कमेंट्स पर फिल्म बनाने का जिम्मा सौंपा जाए तो उसकी बानगी कुछ इस तरह होगी----
फिल्म का नाम-
‘चलो कमेंट-कमेंट खेलें’
हीरो का डायलॉग- तुम मुझे कमेंट करो, मैं तुम्हें कमेंट करूंगा।
हीरोइन-तुमने मुझे जो कमेंट्स किए थे, क्या वो सब झूठ थे....क्या तुम्हें मेरी पोस्ट से वाकई प्यार नहीं...।
हीरो की मां- देख बेटा, ये कमेंट मैंने अपने होने वाली बहू के लिए लिखा है, उसकी पोस्ट पर इस कमेंट को अपने हाथों से कट-पेस्ट करना।
हीरो का बाप- कितने में खरीदा है ये कमेंट...? मेरे बरसों से इकट्ठे किए गए कमेंट्स पर तेरी इस पोस्ट ने जो चांटा जड़ा है ना, उसकी आवाज तेरी पोस्ट को पॉपुलर नहीं होने देगी।
हीरो की बहन- भैया पिछली राखी पर तुमने मेरी पोस्ट पर सौ कमेंट्स करने का वादा किया था, इस बार भूल मत जाना।
गब्बर टाइप विलेन- मेरी पोस्ट पर कमेंट कर दे ठाकुर।
भिखारी- अल्लाह के नाम पर कमेंट दे दे बाबा, तेरे बाल-बच्चों की पोस्ट सौ तक चमके।
11 comments:
नाम ही ऐसा ले दिया. इसलिये आना पड़ा बाबा.
अब बने रहना.
मुबारकबाद वापसी के लिये.
;-) sab moh maya hai mere dost... Comments karne waley kab kiske hue hain???
जनाब पहले तो नयी पुरानी हलचल की ओर से भाभी जी को धन्यवाद बोल दीजिएगा।
अब आते हैं मतलब की बात यानि कमेंट्स पर तो मेरा मानना यह है कि ब्लॉग पोस्ट पर आने वाली टिप्पणियों की संख्या लोकप्रियता या पोस्ट के अच्छे होने का पैमाना नहीं मानी जा सकती।
हिन्दी ब्लॉग जगत में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो टिप्पणियों को ब्लोगिंग का शिष्टाचार भी बताते हैं। किसी ब्लॉग/ या ब्लॉग पोस्ट को पढ़ना और पढ़ने के बाद अपनी टिप्पणी देना पाठक का विशेषाधिकार होता है।
अतः इन सब की चिंता किए बगैर आप लिखते रहें।
सादर
यशवंत जी ने बिलकुल सही कहा है .... लिखते रहिये ..कभी न कभी सबकी सुबह होती है ...दिन फिरते देर नहीं लगती ...बस मन का विश्वास नहीं डगमगाए ...
लगे रहिये !!
ले लो भैया हमसे भी.
बहुत ही बेहतरीन आलेख,आपकी बात से पूरी तरह सहमत.
आप लोगों ने कमेंट के द्वारा मेरे ब्लॉग का जो मान बढ़ाया है, उसके लिए मैं आपका ह्रदय से आभारी रहूंगा। आशा करता हूं कि आप आगे भी इसी तरह मेरा उत्साहवर्धन करेंगे। यशवंत भाई और कविता जी मैं आपकी बात से सहमत हूं कि कमेंट के बिना पोस्ट उस तरह नीरस है जैसे आभूषणों के बिना नारी!
ऊपर मेरे वाले कमेंट में कृपया ‘कि’ की जगह लेकिन पढ़ें...
माननीय पंडित जी , ब्राह्मण धर्म और पत्रकार कर्म के अनुसार "चिंतन" ,यह आवश्यक भी था और आवश्यकता भी और फिर लेखन में तो आप लाजवाब है ही !
"सुबह का भूला " वाली कहावत तो सुनी ही है सो अब "जब जागो तब सवेरा "का स्मरण कीजिये और जुट जाईये उस समय के खालीपन को भरने में !ध्यान रहे एक एक शब्द में मर्म भी हो और स्पंदन भी ताकि टिपण्णी देने के इच्छा भी हो और कर्त्तव्य बोध भी !
सादर !
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