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Sunday, February 17, 2013

कैसा हो कलियुग का बसंत



वाऊ! इस बार बसंत पर कितना अनूठा दृश्य दिखाई दे रहा है। बर्फीली हवाएं। तड़ातड़ पड़ती बूंदे। मन में तो नहीं पर हां तन में सिहरन। कीचड़-खाचड़ से भरे बाग-बगीचे। टूटी सड़कों में धसते प्रेमी-प्रेमिकाओं के पैर। मानो धरती ने इस बार कुछ अनोखा ही रूप धारण कर लिया है। आखिर इस नए रूप का क्या कारण है और बसंत में बेवजह बारिश बरसने की ठोस वजह क्या है, यह जानने के लिए हमने स्वर्ग लोक को फोन मिलाया, वहां से जो जवाब आया....प्रस्तुत है। 

‘हैलो...हम दो टूक ब्लॉग से बोल रहे हैं। दरअसल हमें बसंत के बदले हुए रूप पर स्टोरी लिखनी है। क्या कामदेव सर से बात हो सकती है।’ हमारी बात कम्प्लीट होते ही उधर से आवाज आई... प्लीज होल्ड आॅन....रिसेप्शनिस्ट अप्सरा ने स्वर्ग के भीतर फोन ट्रांसफर कर दिया। फोन बसंत रितु के असिस्टेंट देव ने उठाया...। हां, बताइए क्या बात है...‘जी हमें कामदेव सर से बात करनी है...’...सर तो छुट्टी पर हैं, मुझे बताइए क्या बात है....‘सर छुट्टी पर हैं तो उनकी जगह बसंत रितु का डिर्पाटमेंट कौन देख रहा है...?’ आपको क्या काम है...? जी हमें स्टोरी लिखनी है....हमारे इतना कहते ही असिस्टेंट मैनेजर बोला, अच्छा आप कुछ मसाला तलाश रहे हैं...? जी नहीं....हमें बसंत के बदले हुए रूप के बारे में कुछ ठोस तथ्य प्रस्तुत करने हैं.....सो प्लीज आप हमारी बसंत के एचओडी से बात करा दीजिए.....। असिस्टेंट मैनेजर बोला, काम सर वेलेनटाइन डे के कारण दिन-रात जॉब पर थे। उन्होंने पिछले पंद्रह दिन से छुट्टी नहीं ली थी। इस वजह से उन्हें काफी थकान महसूस हो रही थी। अब वे कुछ दिन की छुट्टी पर चले गए हैं। चूंकि इन दिनों इंद्र सर खाली रहते हैं इसलिए उन्हें काम सर की जगह ड्यूटी पर लगाया गया है। आप उनसे ही बात कर लीजिए।...

हैलो इंद्रदेव जी...क्या आप हमें बताएंगे कि इस बार बसंत का यह रूप कुछ अलग-अलग सा क्यों दिखाई दे रहा है? क्या आप बसंत को किसी नई रितु में परिवर्तित करना चाहते हैं या आसमान में पानी का टैंकर लुढ़क गया है?
 इंद्रदेव....हे भद्रे! ऐसा नहीं है...। दरअसल हम जो कुछ भी कर रहे हैं सब कुछ कामदेव ने ही हमने करने के लिए कहा था। वे छुट्टी पर जाते-जाते हमको ‘छह सूत्रीय बासंती योजना’ लिखकर दे गए थे। हम उसी को अमलीजामा पहना रहे हैं। हो सकता है कि इस बदले हुए मौसम के पीछे विरोधियों का हाथ हो। यह भी हो सकता है कि रूस में उल्कापिंड गिरने से धरती पर बारिश हो रही हो। यह भी हो सकता है कि नर्कलोक में अफजल गुरू रो रहे हों।


 दो टूक - अच्छा तो इंद्रदेव आप बता सकते हैं कि वह छह सूत्रीय योजना क्या थी जो कामदेव ने आपको बताई थी।
इंद्रदेव- ‘पवन चलाना, बूंदों से मन को रिझाना
मौसम में हो परिर्वतन, खिले जाए तन और मन
प्रेम के तीर छोड़ना, दिल को दिल से जोड़ना’
कामदेव इन छह कामों को बड़े ही बोरिंग तरीके से हौले-हौले करते थे। मैंने सोचा कि क्यों न आज की फास्ट लाइफ में इन्हें फास्ट तरीके से अंजाम दिया जाए। और फिर मेरा वर्किंग कॉन्सेप्ट कामदेव के कॉन्सेप्ट से थोड़ा डिफरेंट है....जो भी करो फास्ट करो। डोंट बी स्लो। इसलिए मैंने स्पीड में बारिश की। हवा इतनी ठंडी चलाई कि लोगों के तन-मन दोनों खिल गए। उन्हें बसंत में सावन की याद आ गई। जब बारिश होगी और तेज हवा चलेगी तो नेचुरल है कि मन में पपीहा बोलने लगेगा। रोड पर पानी भर गया। लड़कियों की स्कूटी घिरघिराने लगी। लड़के हेल्प करने को आए....दिल से दिल जुड़ गए। अब इसमें मेरी क्या फॉल्ट है जो प्रेम के तीर से दिल से ईलू-ईलू की अवाज आने के बजाय  ‘बसंत में मार डाला’ की आवाज निकलने लगी।

 दो टूक - पर इंद्रदेव, ना कोयल कूक रही हैं ना पहीहा बोल रहा है। न आम की डाली बौराई है। क्या इस बारे में आपसे जवाब तलब नहीं किया गया?
इंद्रदेव-एक तो मैंने कामदेव का काम आसान किया, उस पर आप मुझ पर ही तोहमत लगा रहे हैं। आप तो ठीक वैसे ही सवाल कर रहे हैं जैसे भारत में हर विस्फोट के पीछे पाक आतंकवादियों का हाथ तलाशा जाता है।

 दो टूक - कहीं ऐसा तो नहीं कि धरती के बसंत पर किसी और ग्रह का मौसम डाका डालने की फिराक में हो। और उसने ऐसा करने के लिए आपको रिश्वत दी हो।
इंद्रदेव....डोंट निकाल बाल की खाल यानि बाल की खाल मत निकालिए। जो हमसे करने के लिए कहा गया, हमने वही किया। हमारे पास कौन ही बसंत की डिग्री है। अगली बार हमें इस सीट पर बिठाया गया तो शॉर्ट टर्म बासंती कोर्स करके आएंगे

 दो टूक - इंडियन सड़कें वैसे ही टूटी-फूटी हैं, उस पर बसंत की प्यारी-प्यारी रितु में कीचड़-खाचड़ किस उदद्ेश्य से की गई?

इंद्रदेव-ताकि प्रेमी-प्रेमिकाएं सड़क पर फिसल जाएं और गाना गाएं...आज रपट जाएं तो हमें ना उठइयो....। ....और फोन डिस्कनेक्ट हो गया।