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Monday, July 30, 2012

पापा जी की प्रॉपर्टी बना फेसबुक



....मकान-दुकान की बात छोड़िए जनाब अब तो लोग फेसबुक को पापा जी की प्रॉपर्टी समझने लगे हैं। क्या गत हो गई है... किसी मुद्दे पर विचार व्यक्त करने और अपनी बात लोगों के बीच रखने तक तो गनीमत थी, ...लोगों में होड़ मची हुई है कि फेसबुक का परिवारीकरण करने की। पूरे परिवार को नन्ही सी साइट पर लाद चुके हैं, अब चाहते हैं कि अपने कुत्ते, बिल्लयों और चूहों को भी इस पर सवार कर दिया जाए। घर में कोई भी आयोजन हो, तुरंत फोटो ऐसे डाउनलोड कर देते हैं जैसे यह साइट उनकी खानदानी एलबम हो। बगीचे में खिलने वाले पहले फूल से लेकर मुन्नी के गुस्से तक को इस पर सजा दिया है। ये देखो.....हमारी बीवी..ये हमारा हनीमून...। ये घर का पिछवाड़ा...ये बच्चे का टूटा पहला दांत..। ये मेरे दादाजी की टूटी हुई खाट।.... ऐसा लगता है कि कुछ लोग घर में जानबूझकर ऐसी घटनाएं प्रायोजित करवाते हैं जिन्हें फेसबुक की विषयवस्तु बनाया जा सके...। जबसे मैंने अपनी श्रीमती को फेसबुक की महिमा के बारे में बताया है, सुबह-शाम मेरे पीछे पड़ी रहती है, ‘हमार लला की छठी वाले फोटो डाल दीजिएना... ऊ दिन हम लाल रंग की चुनरिया में बहुत ही सुंदर लग रही थी।...कल तो हद ही हो गई, कहने लगी..ई देखिए हमार लला ने हरे रंग के दस्त किए हैं...लगता है ठंड लग गई है...ई दस्तन का फोटो फेसबुक पर डालकर लोगों को बता दीजिए कि हमार मुन्ना जड़िया गया है।..... अब श्रीमती जी को कैसे समझाऊं कि ये साइट मुन्ना की पॉटी के फोटो के लिए नहीं बनी है। न ही लल्ली के टूटे दांत और दादी जी की खाट के लिए बनी है। ...पर बेचारे लोगों का भी क्या कसूर...उनके पास शेयर करने के लिए मुद्दे ही कहां बचे हैं। भ्रष्टाचार का किस्सा पुराना हो गया क्योंकि अब जमाना अन्ना का दीवाना हो गया। तेल की कीमतों पर कब तक रोएंगे.... एक दिन एलपीजी से भी हाथ धोएंगे। महंगाई के इस दौर में रोटी मिल रही, यही गनीमत है, वरना एक दिन अपनी भूख भी खोएंगे...। खैर... आप काका की डेथ से वैसे ही दु:खी हैं उस पर महंगाई की याद दिलाकर आपका दिमाग अपसेट करने के लिए सॉरी..। वैसे मेरी श्रीमती का आइडिया बुरा नहीं है। सोच रहा हूं कि फेसबुक पर ये भी एक्सपेरिमेंट करके देखूं। आखिर अपुन का इंडिया विविधताओं से भरा देश है इसलिए कमेंट्स में भी वैरायटी होगी। फिर हमारे इंडियंस ने इतना कुछ उल्टा सीधा खाया है कि सुबह का रिजल्ट भी अलग-अलग कलर का होता है। कई तो सालों से खा रहे हैं और निकाल भी नहीं रहे, पेट में जमे हुए बद्बू भरे कचरे की महिमा क्या होती है, वे बखूबी बयान करेंगे। जिन्हें खाकर डकार आ गई है, उनके कमेंट्स अलग होंगे और जो खाने की प्लानिंग कर रहे हैं..वे हर कमेंट को सहेज कर रखेंगे...। मजा बहुत आएगा क्योंकि जितने मुंह, उतनी बातें...उसी तरह जितनी तरह के खद्दड़, उतने कमेंट्स...। ...इससे पहले कि कोई और इस आइडिया को अमलीजामा पहनाए, मैं चला इसका पेटेंट कराने...।

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