किसी ने खूब कहा है-
मुगलिया सल्तनत ने अगर हिन्दुस्तान को ताजमहल न भी दिया होता, तो भी ग़ालिब का होना किसी नियामत से कम न था.
जी हाँ, मिर्जा ग़ालिब ऐसी ही शख्सियत थे. उर्दू अदब में आज भी उनका कोई सानी नहीं है. वह ग़ालिब जिसने बेमिसाल शायरी का अंजुमन गुलजार किया. वह ग़ालिब जिसने मुसीबतों और मातम के माहौल में रहकर भी मुसलसल बेहतरीन शायरी को जन्म दिया. यही कारण है कि शायरी कि इस शख्सियत को आलातरीन सदाबहार शयर कहा जाय तो गलत न होगा. उन्हें आज अगर अपनी शायरी से किसी मुशायरे में ख़िताब करने का मौका मिलता तो बाअदब उनके सामने शमा का रखना भी एक तरह से आफ़ताब को चिराग दिखने जैसा होता.
2 comments:
गालिब शायरी में ताजमहल हैं।
सही कहा!
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