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Monday, May 20, 2013

ताज और मुमताज




राग ताज का मत छेड़ो
मुमताज महल रो देती है
तुम अपनी प्रेम निशानी में
एक फूल गुलाबी दे देना
पत्थर को हीरे में जड़कर
मत खड़ी इमारत तुम करना
बस अपनी प्रेम कहानी में
किरदार नवाबी दे देना।।

ऊंची मीनारों पर मुझको
मुमताज दिखाई देती है
सूनापन उसको डंसता है
इक चीख सुनाई देती है
जब मैं तन्हा महसूस करूं
तुम इतना करना प्राणप्रिये
साकी बन जाना तुम मेरे
इक जाम शराबी दे देना।।

कब कहती थी ताज चाहिए
मुमताज प्यार के बदले में
 कहती थी बस प्यार चाहिए
मुमताज प्यार के बदले में
आंगन की छोटी बगिया में
तुम प्रेम पल्लवित कर देना
मैं पुष्प बनूं, तुम भंवरा बनकर
प्यार जवाबी दे देना।।

2 comments:

अरुन अनन्त said...

नए अंदाज में लिखी सुन्दर रचना हेतु हार्दिक बधाई राजीव भाई

Arshad Ali said...

वाह !!
प्यार करने वालों को तो प्यार के बदले प्यार चाहिए
झूठे आडम्बर से प्यार में वो कोमलता कहाँ रह पाती
हम सभी ने ताजमहल को प्यार की निशानी के रूप में देखा है मगर वो तो उन लाखों लोगों के एकजुट मेहनत का नतीजा है ...नहीं तो शाजहाँ को ये सलाहियत कहाँ थी की अपने प्यार का निशानी बनवा लेता ...

बेहद सार्थक कविता ..