राग ताज का मत छेड़ो
मुमताज महल रो देती है
तुम अपनी प्रेम निशानी में
एक फूल गुलाबी दे देना
पत्थर को हीरे में जड़कर
मत खड़ी इमारत तुम करना
बस अपनी प्रेम कहानी में
किरदार नवाबी दे देना।।
ऊंची मीनारों पर मुझको
मुमताज दिखाई देती है
सूनापन उसको डंसता है
इक चीख सुनाई देती है
जब मैं तन्हा महसूस करूं
तुम इतना करना प्राणप्रिये
साकी बन जाना तुम मेरे
इक जाम शराबी दे देना।।
कब कहती थी ताज चाहिए
मुमताज प्यार के बदले में
कहती थी बस प्यार चाहिए
मुमताज प्यार के बदले में
आंगन की छोटी बगिया में
तुम प्रेम पल्लवित कर देना
मैं पुष्प बनूं, तुम भंवरा बनकर
प्यार जवाबी दे देना।।
2 comments:
नए अंदाज में लिखी सुन्दर रचना हेतु हार्दिक बधाई राजीव भाई
वाह !!
प्यार करने वालों को तो प्यार के बदले प्यार चाहिए
झूठे आडम्बर से प्यार में वो कोमलता कहाँ रह पाती
हम सभी ने ताजमहल को प्यार की निशानी के रूप में देखा है मगर वो तो उन लाखों लोगों के एकजुट मेहनत का नतीजा है ...नहीं तो शाजहाँ को ये सलाहियत कहाँ थी की अपने प्यार का निशानी बनवा लेता ...
बेहद सार्थक कविता ..
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