‘‘नहीं मैं गिरधर की मीरा सी
जो तुझ पर सर्वस्व लुटाऊं
नहीं राम की मैं सीता सी
तेरे पीछे जग बिसराऊं
नहीं प्रेमिका राधा जैसी
श्याम रटूं, श्यामा हो जाऊं
नहीं रुक्मिणी हिम्मतवाली
लोक-लाज का भान न पाऊं
कलुषित चंचल मन है मेरा
इसको अंगीकार करोगे?
टूटा-फूटा प्रेम है मेरा
क्या तुम मुझसे प्यार करोगे?’’
1 comment:
बहुत प्यारी भावपूर्ण रचना...बहुत सुन्दर..
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