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Wednesday, July 30, 2008

ओस की एक बूँद


मैं ओस की ऐसी बूँद हूँ जो सूरज को देख नही पाती,
नदिया की धारा स्वप्न मेरा, पत्ते पर ही मैं मिट जाती।
एक रात का है मेरा जीवन, तिनका-तिनका रिसती हूँ मैं
मुझे साथ निशा के जाना है ये सोच सुबह मैं बह जाती॥
मेरे छीन ले गया स्वप्न कोई, मेरी रातें तन्हा रोई हैं,
बिरहन के गाल के आँसू सी चुप भी रहती, कहती जाती॥
मुझे आशाओं से प्यार नहीं, मुझे उम्मीदें मत दिखलाओ,
पल भर में ही बुझ जातीहै दीपक से अलग हुई बाती...
मेरा प्यार गया संसार गया , मेरे स्वप्नों का बाज़ार गया,
मेरा रूप गया श्रृंगार गया, मेरे जीवन का हर सार गया,
मैंने लाख यतन कर देखे हैं पर प्रीत की रीत नही भाती,
जितना तुम ह्रदय लगाओगे धोखा देगा साथी...
किसी सीप का मोती बन जायें, दुनिया से ओझल जाए
जो प्यार किसी का हो न सके वो प्रेम दीवाने हो जायें
मिलन ही होता प्रेम अगर क्यों चकोर दीवानी कहलाती
पा लेती अपने गिरधर को मीरा कैसे पूजी जाती.............

6 comments:

रंजू भाटिया said...

जो प्यार किसी का हो न सके वो प्रेम दीवाने हो जायें
मिलन ही होता प्रेम अगर क्यों चकोर दीवानी कहलाती
पा लेती अपने गिरधर को मीरा कैसे पूजी जाती...........

सुंदर लिखा है

बालकिशन said...

बेहतरीन... बेहद उम्दा....
अच्छा लिखतें हैं आप.

शोभा said...

किसी सीप का मोती बन जायें, दुनिया से ओझल जाए
जो प्यार किसी का हो न सके वो प्रेम दीवाने हो जायें
मिलन ही होता प्रेम अगर क्यों चकोर दीवानी कहलाती
पा लेती अपने गिरधर को मीरा कैसे पूजी जाती.............
सुन्दर अभिव्यक्ति।

सुशील राघव said...

rajeev bhai babhut achccha lika hai. aur sabse achchhi laain hai "pa leti apne girdhar ko to mira kaise puji jati"

bahut badiya!!!!!

Unknown said...

bahut badiya likha hai

Unknown said...

achha